Sarvajanik Karyakram Date 1st June 1972 : Place Mumbai : Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 14 Hindi English Marathi || Translation English Hindi 15 - 16 Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari वास्तविक जो चीज स्थित है, जो है ही वह धर्म की ओर मुडता है और धर्म की ओर जब उसका अविष्कार कैसे होता है? जैसे कि कोलम्बस मुडता है तब भी वह बाहर ही खोजता है। हिन्दुस्तान खोजने के लिए चल पड़ा था तब क्या हिन्दुस्तान नही था? यदि नहीं होता तो खोज खोजता है, इसलिए अपने से मनुष्य भागता है। हर किस चीज की कर रहा था। सहजयोग तो है ही समय अपने से मागता है दो मिनट अपने साथ नहीं पहले ही से है। इसका पता सिर्फ अभी लगा है बैठ पाता। उसको अगर दो मिनट अपने साथ बैठने सहजयोग, ये परम तत्व का अपना तरीका है। को कहो तो वो कहता है प्रभु ये क्या मेरे लिए ये यह एक ही मार्ग है, मानव जाति को उत्क्रान्ति सजा हो गई! जिसको आजकल कहते हैं। आदमी (Evolution) के उस आयाम में, उस (Dimension) अपने से इतना क्यों उलझा हुआ है? सोचने की में पहुँचाने का एक तरीका है, एक व्यवस्था है, बात है कि मनुष्य अपने से इतना क्यों जोर से भागा जिससे मानव उच्च-चेतना से परिचित हो जाए. चला जा रहा है? क्योंकि वो अपने से अपरिचित है, उस चेतना से आत्मसात हो जाए जिसके सहारे ये अपने सौन्दर्य से अपने वैभव सं, अपने ज्ञान से और सारा संसार, सारी सृष्टि और मानव का हृदय भी अपने प्रेम से अपरिचित आनन्द की खोज बाहर की चल रहा है। बहुत कुछ इसके बारे में लिखा गया और करते हुए दौड़ रहा है। आनन्द बाहर है नहीं, है, पुरातन कालों से ही खोज होती रही, मनुष्य यह अन्दर है, आपमें है, आप स्वयं आनन्द स्वरूप खोज कुछ रहा ही है हर समय, चाहे वो पैसे में हैं। आप परमात्मा स्वरूप हैं ऐसा सब लोग कहते खोज ले, चाहे वो सत्ता में खोज ले, चाहे वो प्रेम में हैं। सिर्फ बातें करने से यह बात पूरी नहीं होने खोज ले, वो किसी न किसी खोज की ओर दौड़ वाली है। मराठी में कहते हैं कि.। चाहे हम रहा है। लेकिन उस खोज के पीछे में कौन सी आपको कहें कि आप निराकार को खोजें, चाहे कारण यह है कि जो वो खुद है स्वय है वो प्यास है वो शायद वो जानता नहीं। इसके पीछे में साकार को खोजें तो सब बाते ही बातें तो हो गईं, सिर्फ आनन्द की खोज है, आनन्द की खोज में वो हजारों बातें हो गई, करोड़ों किताबें लिखी गईं, न सोचता है कि बहुत सी गर सम्पत्ति इकट्ठा कर ले जाने कितने ही जीवन बर्बाद हो गए, इन्सान की तो उस आनन्द में लय हो सकता है लेकिन ऐसे खोज का कोई अन्त नहीं! मनुष्य जो कुछ भी भी देश अनेक हैं जिन्होंने सम्पत्ति में बहुत कुछ खोजता हैं अपने मनसे बो मन के दायरे में प्रगति कर ली, बहुत कुछ पा लिया है और अत्यन्त दुखी है। आनन्द तो दूर रहा, हजारों लोग वहाँ है वो इस मन से समझने वाली है नहीं। अब जैसा आत्महत्याएं कर रहे हैं! सारी खोज के पीछे में मेरा भाषण है ये भी आपके लिए सिर्फ बातचीत ही आनन्द की प्यास आपको घसीटे चली जा रही है हैं ये भी एक बातचीत ही है क्योंकि इस बातचीत किसी अज्ञात की ओर, सारी ही खोजों में ढूँढ़ते-ढूँढ़ते से आप उस परमात्मा को नहीं जानेंगे। जितनी भी जब मनुष्य हार जाता है, और कहीं मिलता नहीं तो मैं इस पर बात करती जाऊँ उतना ही आपके मन Limitations में खोजता है। मन से परे की जो बात ন Original Transcript : Hindi पर इसका बोझा बढ़ता जाएगा। अगर में कहूँ कि उसे खोज नहीं पाए थे। गर कोलम्बस हिन्दुस्तान कोई बोझा न रखो तो उसका भी ोझा बनता नहीं खोज पाया था तो इसका मतलब ये नहीं कि वो कुछ कम था। और बाद में जिन लोगों ने उसे जाएगा। इसी तरह की च्यवस्था परमात्मा ने हमारे अन्दर कर दी है कि मन से हम जो भी करेंगे वह खोज लिया है वो उन्होंने उसे कोई नीचे गिराने के बोझिल हो जाएगा और उस बोझे के नीचे हम दबे हुए उड नहीं सकते वहाँ पर जहाँ पर हमें जाना जब उसे अलग-अलग होकर सोचते हैं तब इस है इसीलिए खोज आज तक अधूरी ही रही है। तरह से बात बहुतों के दिमाग में आती है कि लेकिन नव निर्माण की बात मैं आप से करने माताजी कुछ अलग ही बात कह रहीं हैं। नहीं। मैं वाली हूँ सिर्फ बात ही नहीं इसका अविष्कार, जो इन सब खोजों की खोज का ही पता आपको दे खोज निकाला है। उत्क्रान्ति के मार्ग में ऐसा नहीं रही हैं। आज तक अत्यन्त कष्ट उठाकर के न होता रहा है कि कोई प्राणी अति विशेष जाने कितने मानवों ने इस पर ध्यान दिया । Specialization में या विशेषज्ञ हो गया तो वो गिर जाता है, वो खत्म हो जाता है, इसी तरह से मनुष्य दिया, बड़े बड़े Scientists ने भी दिया। वो भी एक का भी हुआ जा रहा है कि इतना ज्यादा आपस की हद तक जाकर के हार जाते हैं। बहुत बहुत सन्त जो विरोध और Competiton चल रही है उससे और जो महन्त हो गए, Realized हो गए और मनुष्य ने भी अपने दिमाग को इतना ज्यादा विशेषज्ञ उन्होंने भी पा लिया लेकिन दे नहीं पाएं। इसका कर लिया है कि वो फटा चला जा रहा है उसका कारण समय है। परमात्मा के लिए समय अनन्त लिए नहीं खोजा। ये सामूहिक खोज है आप भी Psychologists ने भी दिया. Biologists ने भी दिमाग और एक अब नया तरह का मानव आने की है हम लोग उसे ऐसा सोचते हैं कि जो लोग पीछे जरूरत है जो मन से परे उस शक्ति को जान ले हो गए और जो लोग आगे हो गए और जो लोग जो इस मन को भी चलाता है और इस हृदय का मर गए जो बड़े हो गए। कौन मरा है मैं ये पूछना भी स्पन्दन करता है। उस शव्ति को जानने के चाहती हैँ ? कोई मरता ही नहीं । जितने भी मरते बारे में कितनी भी बातें आप करिए और कितना ही हैं परलोक में बैठते हैं और वापिस यहाँ लौट आते इस पर प्रयत्न करे आप वहाँ तक नहीं पहुँच हैं। प्राणी मात्र से कुछ कुछ लोग मनुष्य हो जाते सकते। ये बात नि सन्देह है। ऐसे तो सभी ने यही हैं लेकिन अधिकतर मनुष्य परलोक से वापिस यहाँ लिखा है जो मैं कह रही हूँ। कोई भी ऐसी विशेष पर और यहाँ से परलोक! यही आना जाना लगा बात तो कह नही रही हूँ। नानक जी को आप पढे, हुआ है। कोई मरता है तो हो सकता है कि आपमे कबीर दास जी को आप पढ़ें, आप वशिष्ड को पढे, से जो आज यहाँ बैठे हुए हैं ये भी जन्म जन्मातर गुरुओं के गुरु जनक के बारे में आप पढ़ें, अपने की खोज लिए हुए आज यहाँ पहुँचे हुए हैं और देश में छोड़ो, बाहर के देशों में भी हजारों लोगों को उसको पा सकते हैं अगर आप पा सकतें हैं तो जो पार हो चुके हैं हजारों वर्षो से ऐसा ही लिखते उसमें इतना वाद विवाद क्यों? एक साधारण सी आए हैं यही लिखते आए हैं जो मैं कह रही हूँ कि बात है, मुझे बड़ी बचकाना सी लगती है, बहुत ही जो पाना है अकस्मात अन्दर होता है। लेकिन चो बचकाना सी बात है कि लोग हर एक चीज का भी बेचारे कहते ही रह गए क्योंकि शायद वो भी राजकरण बना लेते हैं एक माँ खाना खाने को दे 3 Original Transcript : Hindi मिल जाए। उसमें परमात्मा को कोई भी Interest रहीं हैं उसका भी राजकरण बना लेते हैं, कैसे कार्य चलेगा? ये राजकरण नहीं है। ये तथ्य है, ये सत्य नहीं है। हमने परमात्मा को समझने में ही गलती कर है। एक बहुत बड़ी खोज है। यहाँ पर जो लोग Realized लोग बैठे है वो समझ रहे हैं, में क्या दी है। परम तत्व को परम ही देने में Interest है। कह रही हैं। धर्म की खोज में मनुष्य परलोक ही ये बात आप लिख डालिए। और इस पर भी लोग तक पहुँच पाया है. अभी तक परम तक नहीं पहुँच सब बात करते हैं कि परम तत्व जो है वो पाया। और जो परम तक पहुँचे भी थे वो परम को कुण्डलिनीयोग से पाया जाता है, ऐसा भी बहुत नीचे नहीं ला सके और लोगों के लिए ये बात सत्य लोग लिखकर के गए। लेकिन कुण्डलिनी योग से है जैसे आपके अनेक जन्म हुए हैं मेरे भी अनेक कोई सिद्धि पाई जा सकती है ऐसी बात कहीं भी जन्म हुए हैं इन सब बड़े-बड़े खोजने वालों से लिखी नहीं गई है। जिन्होने सिद्धियों पाई है वो मेरा भी बहुत नजदीकी संबंध रहा है। और वो लोग नहीं लिखते कि कुण्डलिनी से सिद्धियों आती हैं, जितने मेरे अपने हैं शायद आप लोगों के नहीं हैं। कभी भी नहीं । कुण्डलिनी आपकी माँ हैं, आपके जो लोग बड़े-बड़े झण्डे लगाते हैं कि हम मुसलमान अन्दर बैठी हुई हैं, आपको पुनर्जन्म देने के लिए । हैं, हिन्दु हैं, ये हैं, वो है, वो सिर्फ एक वकीली वो आपको सिर्फ पुनर्जन्म देंगी, आपको सिद्धियों लेकर के झूठमूठ से आए हैं उनके पास कोई भी देकर के परलोक में फँकने वाली वो मूर्ख मां नहीं guarantee नहीं है कि पिछले जन्म में हो सकता है। जितनी समझ आपके पास है उससे कहीं है जो हिन्दू है वो मुसलमान रहा हो, जो मुसलमान अधिक समझदार है वो, कहीं अधिक प्रेममय है। वो है वो इसाई रहा हो। जब जन्म जन्मांतर की बात आपकी गलत जगह में, असत्य में ढकेलने वाली है, जब अनन्त की बात है, तो सोचना भी उसी दुष्ट माँ नहीं है । कुण्डलिनी के योग से जब तक Level पर, उसी स्तर पर होगा। वो पर ऐसा है कि परमतत्व की पहचान नहीं होती है तब तक वो कुण्डलिनीयोग नहीं है। और वही सहजयोग है। और इसकी व्यवस्था कितनी खुबसूरती से परमात्मा ने हमारे अन्दर की है, वो भी एक समझने का जो कुछ परम है वो जड़ नही, जो कुछ परम तत्व है वो जड़ नहीं। जो कुछ कठिन है वो gross नहीं, जो सूक्ष्म है वो जड नहीं। इस बात को आप ठीक से समझ लें। वो जड़ में प्रकाशित हो सकता है की बात है। जब बच्चा माँ के पेट में आता है तो किन्तु परम जड़ में Interested नहीं है, उसमें कोई जड़-तत्व से उसका सारा मन, बुद्धि चित्त, अहंकार दिलचस्पीं नहीं है। जैसे कि बहुत से लोग मुझे बताते हैं कि वे एक साधू-सन्त थे वो परमात्मा से प्रकाश आता है बो माथे के तालू में से जिसे क्रि कुछ माँग रहे थे और इनको परमात्मा ने दें दिया। Fontanelle Bone अंग्रेजी में कहते हैं और नीचे दिया होगा, लेकिन परमात्मा ने नहीं दिया, ये मैं उतरता है और अपना Brain जिसका आकार बता सकती हैं । परमात्मा को इसमें कोई भी त्रिकोणाकार एक त्रिकोण के जैसा है उसमें से यही Interest नहीं है कि आपके इतने बच्चे पैदा शक्ति गुजरते वक्त तीन हिस्सों में बैट जाती है । हो जाएं या ये सब परमात्मा ने किस खूबी से किया है ये जानने घर मिल जाए, आपको दुनिया भर के ऐशो आराम के लिए यहाँ पर कोई डॉक्टर हो तो वो समझ वो सब बना देता है लेकिन उसके अन्दर जब आपको ज़मीन मिल जाए, आपको 4 Original Transcript : Hindi सकता है। इसी को हम Sympathetic और कह रही हैूँ, कि सारा Sympathetic Nervous Parasympathetic Nervous System कहते हैं। System सुषुम्ना नाड़ी है जो कि बीचों-बीच है हमारे शरीर के अन्दर ही दो ऐसी शक्तियाँ विराजमान और उसकी पहचान एक है कि जब कुण्डलिनी हैं कि जिसके बारे में हम बहुत कुछ कम जानते हैं उठती है तो आँख की पुतलियाँ बड़ी हो जानी और जिसके बारे में हमें पता लगाने में बड़ी चाहिएं। ये तो साधारण बाहर की पहचान है किसी दिक्कतें होती हैं खासकर के Parasympathetic भी 'doctor" से आप पूछ ले कि जब para Nervous System के बारे में। अपने योग शास्त्र sympathetic nervous system activate होती में इसे सुधषुम्ना, ईडा और पिंगला ऐसी दो नाडियां बताई हैं। ईडा और पिंगला ये दोनों ही अपने शरीर भी हम आपको दिखा सकते हैं अगर आपकी नजर में Sympathetic Nervous System का उद्भव खुली हुई हो तो क्योंकि आपको तो हर एक चीज करती हैं। माने उसका जड़तत्व जो है वो का कोई न कोई proof ही देना पड़ता है नहीं तो Sympathetic Nervous System है। अब ऐसा कुछ समझ में नहीं आती बातें। इसका भी एक समझ ले कि परमात्मा ये Petrol अपने सिर में यहाँ proof है कि गर आप हमारे किसी कार्यकरम में से भर देते हैं और Petrol भरते वक्त वो कुछ ऐसी आए तो आज ही आपको दिखा देंगे कुण्डलिनी घटना घटित होती है कि प्रिज्म के अन्दर से का स्पन्दन भी आप देख सकते हैं। आप जानते हैं गुजरने वाले उनके किरण आपस में इस तरह से कि सबसे पहले त्रिकोणाकार अस्थि पर कभी भी आकर के और फिर मुड़ जाते हैं, जिसे Reflect कोई स्पन्दन होता नहीं । बो हम दिखा सकते हैं होना कहते हैं। और फिर नीचे जाकर के उनकी आप गर देखें कि त्रिकोणाकार अस्थि में स्पन्दन ईडा और पिंगला, है, फिर धीरे धीरे स्पन्दन ऊपर की ओर जो बराबर बीचों बीच शिखर पर से बीचों बीच उठता है और इसके साथ-साथ बीच-बीच में उतरने वाले किरण, आपकी कुण्डलिनी बन करके किसी -किसी जगह ज्यादा स्पन्दित होता है। वही जो त्रिकोणाकार अस्थि, अपने मज्जा तन्तुओं के अपने केन्द्र हैं। ये आपको दिखाया जा सकता है नीचे बना हुआ है, उसमें वास करती है इससे एक और इसको आप देख सकते हैं और उसकी प्रचीति बात तो जाहिर हो गई कि हमारी कुण्डलिनी जो देख सकते हैं । जब कुण्डलिनी सुषुम्ना से उठेगी है वो ऐसी जगह बैठी हुई है जिसका सम्बन्ध सेक्स तभी आप पार हो सकते है। लेकिन इसके लिए से कुछ नहीं है। अब आप गर किताबें पढ़़े तो परमात्मा ने न जाने क्यों एक बड़ी जबरदस्त कुण्डलिनी शास्त्र पे तो आप सब जान जाइएगा कि condition लगा दी है। एक बड़ी भारी अटकल है ऐसा होता है, वैसा होता है, ये है, वो है। लेकिन इसमें, जो देना ही पड़ता है। वो यह कि कुण्डलिनी कुण्डलिनी को उठाने वाले, वो बहुत कुछ मुझे भी सुषुम्ना पर तभी आएगी जब परमात्मा का असीम मिले हैं और मैनें भी जाने हैं वो सब Sympathetic प्रेम उस आदमी में उतर पड़ेगा जब तक वो प्रेम से आपको ले जाते हैं, सुषुम्ना से उठाते नहीं हैं। मनुष्य में उतरेगा नही, कुण्डलिनी उठने वाली नही उसकी एक पहचान है, आप में से गर कोई चाहे आप कुछ कर लें। वो नाराज हो सकती है, Doctor होगा तो समझ लेगा इस बात को जो मैं गुस्सा हो सकती है। लेकिन कुण्डलिनी कभी भी है तो पुतलियाँ "dilate" होनी चाहिएं। और बाहर ऐसी दो नाडियाँ बनती हैं और होता 1 5 Original Transcript : Hindi नहीं उठ सकती है जब तक वो असीम प्रेम सुषुम्ना से भरा गया था, उसका गेट बन्द हो गया अब के अन्दर जगह बनी हुई है, खास इसकी जगह हम अलग हो गए, अब हमें लगा कि भई हम कोई बनी हुई है, हमारे नाभि चक और अनहत् चक के हैं! अब अहंकार शुरु हुआ, हमें लगा कि हम हैं। बीच में एक बड़ी सी जगह बनी है। जब तक अब यही है भागने का, अपने से भागने का कारण उसके अन्दर ये प्रेम उतरेगा नहीं तब तक सुषुम्ना है क्योंकि हम जो हैं, हमको हम जानते ही नहीं कि से यह प्रवाह उठ़ने वाला नहीं। जैसे समझ लीजिए हम क्या हैं आप मेरी ओर इतना चित्त लगाकर के कि दो सीढियां हैं और बीच में एक सीढ़ी है, उस जो सुन रहे हैं मैं आपकी ओर अपना चित्त नहीं सीढ़ी में और हममें कुछ अंतर है । क्या ? इस लगा सकती। मैं कहूँ आप अपनी ओर चित्त लगाएं अन्तर को आप किसी भी तरह से लॉघ नहीं पा रहे तो आप लगा ही नहीं सकते हैं क्योंकि आप बह है, उसमें कोई पुल नही है जिसको आप लाघकर गए हैं उस प्रेम में जो आप है एक जो प्रतिहंकार जाएं। और ये दो सीढ़िया बराबर ईडा और पिंगला है, Super ego है, उस पर बोझे जितने भी हमारी नीचे जमीन पर लगी हुई हैं, Sympathetic ओर से बढ़ते जाते हैं, हर तरह के बोझे, उसमें आप Nervous System की Left और Right ये दोनों कह सकते हैं कि इस तरह के बोझे जिसमें हम ह आप को सिखाते है ये करो, वो करो, ऐसा नहीं ही जमीन पर लगी हुई हैं और बीच वाली अधान्तरी लटकी हुई है जो परम में पहुँचाती है। अब Sympathetic Nervous System की जो दोनों जाना चाहिए. उधर नहीं जाना चाहिए, ये नहीं सीढ़ियाँ हैं, अब अगर कोई Psychologist हो तो खाना, वो नहीं खाना चाहिए, इस तरह की चीजें या मेरी बात समझ सकता है, वो एक जो Left Hand ऐसा कहें कि हम बड़े बड़े भाषण देते हैं लोगों को की तरफ से है दाहिनी ओर है वो आपको पहुँचा कि आपको हिन्दुस्तानी बनना चाहिए., आपको जापानी देती है, Ego में, अपने अहंकार में, और जो Right बनना चाहिए, आपको इससे नफरत करना चाहिए. Hand Side में है वो आपको पहुँचा देती है आपके उससे नफरत करना चाहिए, हम हिन्दु है, हम Super ego मे, प्रतिअहकार में । ये दोनों मिलकर मुसलमान के हमारे माथे पर छा जाते हैं, जैसे कि कोई Conditionings जो है ये बौझ हैं उससे यह Super Balloon न हो! इस तरह से ऊपर आ जाते हैं ego दब जाता है। और जो अहंकार है वो ये कहता और आकर के इस जगह जहां हमारा तालू होता है नहीं हम तो ये हैं, हमें ये करना चाहिए, वो करना है, उस पर आकर के दोनों मिल जाती हैं कभी चाहिए। जो कहता है नहीं करना चाहिए वो तो कभी तो ये पूरे सारे सिर पर ही छा जाते हैं। कभी Super ego है और जो कहता है करना चाहिए वो तो प्रतिअहंकार जबरदस्त होता करना चाहिए, वैसा नहीं करना चाहिए, इधर नहीं हैं, हम इसाई हैं, अनेक तरह के सब है और कभी ego है। असल में हम न तो कुछ नहीं करते हैं अहंकार। जो भी ज्यादा जबरदस्त होता है वो और न तो कुछ करते हैं। करने वाला तो कोई और हमारे दिमाग पर छाया हुआ है और आकर के बो ही है। बैंकार ही में बचकानापन है। करने वाला हमारे इस मार्ग को रोक देते हैं, बन्द कर देते हैं अपना काम तो करता ही है और करेगा ही लेकिन अब जो Petrol हमारे अन्दर Para Sympathetic यही जड़ता हमारे अन्दर दोनों हैं कि हम उस Nervous System से मरा गया था, जो कुण्डलिनी Petrol को इस्तेमाल करते हैं। इन दोनों ईडा और 1 Original Transcript : Hindi पिंगला से अपने Sympathetic Nervous System परमात्मा को पाने का अधिकारी है । ऐसा उन्होंने से, इससे हम अपने को Conditioning कर लेते हैं, साफ-साफ कहा है। लेकिन कौन पढ़ता है उनको? कोई पढ़ता जो नहीं ना! प्रश्न तो ये है कि हभ अब बीचोंबीच सुषुम्ना नाड़ी है। अब बहुत से लोग सभी को पढ़ते है और उसमें से उनको ज्यादा ही नहीं। इनके विरोध में बोलते हैं, उनके विरोध में बोलते और मालूम भी है तो थोड़ा बहुत मालूम है। जो हैं। भाई मैं किसी के विरोध में नहीं बौल रही हूँ। अपने को बहुत हिन्दु कहलाते हैं उनको पहले लेकिन तुम तो गलत सीढ़ी पर चढ़ गए न, उससे आदिशंकराचार्य को पढ़ना चाहिए। आदिशंकराचार्य तो उतारना पड़ेगा ही, जो बीच की सीढ़ी में तुम्हें ने ही तो हिन्दू धर्म की संस्थापना करी थी, फिर आदिशंकराचार्य को क्यों नहीं पढ़ते है? दुनिया भर मेरी समझ में नहीं आता कि इसमें किसी से के लोगों को पढ़ते हैं, उनको क्यों नहीं आप पढते? विरोध करके मुझे क्या करना है? मैं तो आपको उनको आप जानते क्यों नहीं? उनमें मुझमें जो थे बहुत ही गुरुजनों से करोडो में एक दो होते हैं मैं कहती हूँ करोड़ो में मिलने जाती हैँ, उनसे बात करती हूँ कि आप कर लाखों तो है हीं । ये आशावाद का अन्तर नहीं है क्या रहे हैं? कुछ करने से परमात्मा नहीं मिल यह समय का अन्तर है समा ऐसा है। कलियुग सकता। इन लोगों से कुछ करवाइए नहीं, ये करने का समा है ही बड़ा घनघोर युद्ध का समय है। घरने से परमात्मा मिल नहीं सकता। ये आपको मैं अन्धकार और प्रकाश का घनघोर युद्ध का समय क्या बता रही हूँ आप वशिष्ठ पढ़ें, नहीं तो चल रहा है। आपको पता नहीं क्योंकि आप तो आदिशंकराचार्य को पढ़ें जो कि historical चीज मुझे ही देख रहें हैं। अपने से परे आप किसी को है। उनको पढ़े, उन्होंने भी यही कहा है कि आप देख नहीं पा रहे लेकिन जो लोग Realized हैं वो जानते हैं कि कैसा कैसा जंग बाँधी गया बोझे में डाल लेते हैं। लोगों ने मुझसे ऐसा भी कहा कि माताजी आप तो पढ़ते हैं जिन्हें धर्म के बारे में कुछ मालूम चढ़ाना है। इसमें किससे मैं विरोध कर रही हूँ? बता रही हैँ कि आप गलत सीढ़ी पर चढ़ गए हैं। अन्तर है वो इतना ही है वो कहते सभी उतर आइए। मैं तो बड़े बड़े परमात्मा को पाने के लिए कुछ कर नहीं सकते। है। लेकिन अन्तर है, उनमें और मुझमें जरा सा, थोड़ा Negative और Positive forces दोनों अपना जोर सा फर्क है। इतना ही अन्तर है कि उन्होंनें कहा बॉँध रहे हैं। Sympathetic और para था कि परमात्मा को पाने के अधिकारी बहुत ही sympathetic का पूरा जोर है Sympathetic कम है, इसलिए ठीक है कि कुछ भक्ति में रहें और Para Sympathetic को छूकर चली जा रही है अपने ऊपर में योग लगाकर अपने मन को और Sympathetic कितनी भी छू लं, गर Para कुछ अनुशासित करें लेकिन उन्होंनें नहीं कहा था कि Syrmpathetic अनन्त से एकाकार हो जाएगी तो अनुशासित हों, फिर चाहे वो किसी भी तरह का उसमें भरता ही रहेगा । कितना भी आप Petrol हो और वैसा भी मन जो विषयों के पीछे दौड़ता है खर्चा करें, गर पेट्रोल पम्प ही लगा हुआ है तो फिर और अपने को जिसे indulgence कहते हैं, दोनों क्या डरने का? ये सारे Sympathetic का प्रश्न है, ही मन इस कार्य के लिए व्यर्थ हैं। ऐसा सुन्दर मन Sympathetic की जी Active Consciousness जो छोटे बच्चों जैसा निष्पाप हो, वो ही इस की side है. जहाँ से आप सारा काम करते हैं, Original Transcript : Hindi Energy इस्तेमाल करते हैं, वो गर अति इस्तेमाल हमें आगे बढ़ना चाहिए। उस पर उनका चित्त. मेरा ही तो कैसर जैसा रोग हो जाता है और जिस लड़का जो है वो ठीक हो जाए, मेरे बच्चे जो हैं तरफ में Super Ego होता है वो ज्यादा इस्तेमाल हो तो पागलपन आ जाता है। हम किसी को ठीक ठीक हो जाएं, मेरा पति जो है वो ठीक हो जाए! फिर कोई कहेगा, वो मेरे पैसे का मामला है ठीक ठाक नहीं करते हैं। यह भी कहना कि हम हो जाए! चिंत्त कहाँ है? अथ आप Realized हो बीमारियों ठीक करते हैं एक तरह से गलत ही बात गए तो भी चित्त वहीं है जिसे आप छोड़कर आए हैं! है क्योंकि वो तो Para Sympathetic Nervous जिसने चैतन्य पर चित्त रखी है वो बहुत ऊँचा उठ System जो कि इन दोनों ही System को ठण्डा गया है। आपके बीच में भी ऐसे लोग बैठे है जो हुए कर देती है अपने आप ही मनुष्य जो है चो ठीक हो पढ़े लिखे हैं, देवता स्वरूप है, यह लोग वन्दनीय है, जाता है गर कोई पागलपन होगा तो वो भी ठीक यही देवता है इन्हीं को देवता कहना चाहिए हो जाएगा और कोई गर आपके अन्दर में Over जिनका Rebirth हुआ है। बेकार की बाते करने Activity से कैंसर जैसा रोग होगा तो वो भी ठीक वाले लोगों से झगड़ा करने की किसी को भी कोई हो जाएगा। कैसर का इलाज सिर्फ सहज योग है जरूरत नहीं। जिनको आना हो आए,नहीं आना है और कोई उसका इलाज संसार में नहीं है यह बात नहीं आए। उनसे झगड़ा करने की इस पर वाद सिद्ध हो जाएयी हम जानते हैं थोड़़े से ही दिन विवाद करने का समय है ही नहीं क्योंकि वो लोग में यह बात सिद्ध हो जाएगी और हमने बहुतों का बाद-विवाद ही करते रहेंगे । इलाज भी जो किया है कैसर का वो भी लोग यहाँ भी कहा था न कि निम्न कोटि के लोग. उनको तो बैठे हुए हैं, वो भी बत्ता सकते हैं । तो भी, एक बात पहले और शुरू से ही कह अनुशासित करें और किसी तरह से अच्छे से रहें, रहीं हूँ कि चित्त हमारा कहाँ है? चित्त क्या उस चोरी चकारी से बचे। एक अच्छे सामाजिक घटक कैंसर पे है जो इस शरीर को जर्जर किये हुए है बन कर रहें । किन्तु परम को पाने वाले लोग, परम जो कि जड़ है? हमारा चित्त गर चैतन्य पर है तो की ओर दृष्टि रखने वाले लोग, ऐसी चीजों से न्य की बात सोचनी चाहिए। जब तक हम सन्तुष्ट होने वाले नहीं। जब तक परम आपने पाया अपना चित्त चैतन्य की ओर नहीं रखेंगे तो जड भी नहीं आप को मेरे ऊपर भी बिल्कुल विश्वास नहीं हमें सताएगा सारा काम चैतन्य का है जडता का करना चाहिए। इस ढकोसलेबाजी की बिल्कुल कोई काम ही नहीं है। हमको इतनी आदत जड़ता जरूरत नहीं । किसी भी चीज आपको कोई भी की हो गई है कि मनु छोटी जड़ बातों से बताए आप कुछ विश्वास न. करके पहले अपने चिपक जाता है. छोटी छाटी जड़ बातों से। जैसे मैं अन्दर पा लीजिए तभी आप मेरे ऊपर भी उपकार आपसे कहूँ कि एक स्त्री हमारे पास आती थ्री, करेगे यहाँ कोई बाजार खोलना नहीं है, पैसा उनको Realization हो गया और वो काफी अच्छे कमाना नहीं है, माल कमाना नहीं है। सिर्फ मुझे से देने वरगैरा लग गई। लेकिन Reallzation का यहाँ मनुष्य का परिवर्तन करने का है। इस जन्ग आदिशंकराचार्य ने ठीक है वो अपना किसी तरह से अपने मन को मतलब भी यह तो नहीं कि आप व्यस्त हो गए, में नही हुआ तो अगले जन्म में देख लेंगे। तो, हमें आपका पुनर्जन्म हो गया आप निरक्षर हो गए। अब अनन्त में ही रहने की आदत सी है। लेकिन अब भी 8. Original Transcript : Hindi यह सोच लेना चाहिए कि जो कोई मर चुके हैं वो के साथ कैसा भी खिलवाड हो गया हो। खिलवाड मर चुके चित्त को अपनी ओर रखें। शायद उनमे से आप कृण्डलिनी में खराबी आ गई हो, उसपर लोग मुझे एक हों जिन्होंने कुछ कुछ लिख दिया था, हो कहते हैं कि आप विरोध कर रहें हैं! भई पागलपन सकता है कि आप ही वो बड़े भारी लोग हों की बात है! एक माँ है जो बच्चे की कोई चीज जिन्होंने बहुत कुछ लिखा हो और आज भी यहाँ बिगड़ी देखती है तो उससे वो बताती है तो किसी जन्म लेकर आए हैं, अपना दावा लेने आए हैं। जो का विरोध नहीं करती है। तुम्हारी अबोधिता में, हो चुका सो बीत गया। सहजयोग में जो साधक होता है उसे कुछ भी उसको हम बैठे हुए हैं उसे ठीक करने के लिए । नहीं करना चाहिए। जो डूब रहा है पानी में वो कुछ लेकिन पहले ही इस तरह की बात सोच लेना ये न करे तो अच्छा है लेकिन बाकी के तैराक लोग कौन सी आर्तता है? यह कौन सी माँ है? उसे बचाते हैं और उसे उठाते हैं यही साधारण हैं। उनकी बातें करके मत घबराइये। बहुत हो चुके हैं, पर मैं कहती हैं कि किसी की भी सादगी में, गर तुम्हारा कुछ बिगाड़ हो जाए, तो गुरु का आज, गुरु पूर्णिमा का आज दिवस है तरह से सहजयोग आप समझ लें। जो लोग अपने और सहजयोग का पूर्णवर्णन विषद रूप से करना में उतर गए हैं, जो लोग पार हो गए हैं, जो अपने इतने छोटे समय में सम्भव नहीं। मेरा आज विचार अन्दर एकाकार अपनी शक्तियों से हो गए हैं, वही था कि काफी विषय पर मैं कह सकूंगी लेकिन मैं सब कुछ करेंगे। आप शान्त बैठिएगा जो अभी तक जानती हैं कि यह विषय अत्यन्त विषद सागर की पार नहीं हुए हैं। आपके सूत्र में आकर के वो आप तरह, और अनेक ध्यान की क्लास में मैंनें लोगों को को प्यार देंगे, आपके सूत्र में आकर वो आपके बताया है। इतना ही नहीं जो लोग Realized है. चकों को ठीक करेंगे क्योंकि आप अभी अपने चक्ों उस स्तर पर आ गए हैं कि इस बात को समझें को जानते ही नहीं। जब आप पार हो जाएंगे तब क्योंकि उनके हाथ से वो प्रवाह निकल रहा है, वो आप मेरी बात जानिएगा कि हा यहाँ चक्र है, यह आनन्द लहरियाँ बह रही हैं, वो प्रेम की लहरियाँ चक्र घूम रहा है, वो चक चल रहा है, उनका ऐसा बह रही हैं जिससे वो समझ सकते हैं कि Collective चक्र है। तभी आपको Collective Conscious Consciousness क्या है, सामूहेक चेतना क्या जिसे कहते हैं 'सामूहिक चेतना', उसका आभास है। इसको भी समझना चाहिए कि ये कौन सी चीज होगा पहले ही से नहीं नहीं करने वाले लोगों का है। अभी बहुत से लोग आपमें ऐसे भी होंगे जो मेरी यह स्थान नहीं है और न ही उनके लिये यहाँ पर ओर हाथ करके बैठे तो आपके अन्दर ऐसा लगेगा कोई व्यवस्था की जा सकती है। ऐसे लोग जो कि कि जैसे हाथ थरथरा रहें हैं, कंपकंपा रहे हैं । आप है, चाहे वो कितने भी Condition में हों आपको ऐसा लगेगा और मुझसे लोग कहेंगे ये लेकिन जो सच्चाई चाहते हैं और जो चाहते हैं कि Vibrations आ रहे हैं। ये Vibrations नहीं हैं वो हमारे अन्दर परिवर्तन हो जाए, वो सिर आँखो पर तो आप हमारे विरोध में हैं, आपमें कोई चीज हमारा हमारे। और मुझे पूर्ण विश्वास है के इस जन्म में विरोध कर रही है पूरा समय। ये जो हम प्यार ही उनको मिलेगा चाहे उनकी कैसी भी आपको दे रहे हैं उसके विरोध में थरथरा रहे हैं। ये Conditioning हो गई हो, चाहे उनकी कुण्डलिनी आप हमारे विरोध में खड़े हैं इस लिए आप थरथरा Original Transcript : Hindi रहे हैं, वो Vibration नहीं हैं। और Vibration तो यह कहेंगे कि इतनी जल्दी कोई पार होता है? नही तभी हम मानते हैं जिस वक्त आपके सहस्रार का होते, बहुत से नहीं होते, चार चार साल से लोग चलना रुक जाए कबीर दास जी ने कहा है कि हमारे पास आ रहे हैं, बहुत बड़े-बड़े लोग हैं, कोई शिखर पर अनहद् बाजोरे। शिखर पर अनहद् की तो बहुत भारी Minister Saheb हैं, कोई गवर्नर आवाज आती है, माने हृदय में जो स्पन्दन है वैसी साहब हैं, कोई कुछ हैं ! नहीं होते तो नहीं होते, आवाज आने लगती है। ये तो हुई जबतक टूटा हमें इससे क्या करना? हमें किसी से पैसा तो लेना नहीं, जब टूटने पर सारी ही आवाज टूटकरके, है नहीं कि आप हमें दो हजार दे दीजिए, हम पार सारी ही आवाज टूटकरके आप परमात्मा से एकाकार कर दे, Certificate दे देंगे! जो नहीं हुआ सो नहीं हो जाते हैं तब न कोई आवाज आती है, न कोई हुआ, जो हुआ सो हुआ। अभी हम अमेरिका गए थे चीज दिखाई देती है, न कोई चीज दृश्यमान होती वहाँ पर एक साहब बहुत बड़े राजा हैं वो कहीं के। है। बहुत से लोग कहते हैं कि हमें दिव्यदृष्टि है, वहाँ मिले, वो हमारे साथ थे वो हमसे कहते हैं ये हमें दिव्य फैलाना है। ये सब किसलिए? दृष्टि से क्या होता है? दृष्टि से क्या मिलने वाला है? दृष्टि हैं हमको नहीं करते हैं, हमनें क्या किया? हमनें से ही गर सब कुछ मिलने वाला होता तो फिर कहा बेटे हम तुमसे कुछ कहेंगे नहीं क्योंकि तुम्हें खोज काहे की? इस दृष्टि से मिलने वाला वो नहीं दुख होगा तुम धर्म पर इतना लेक्चर देते हो तुम और इस कान से सुनने वाला वो नहीं है किन्तु कभी धर्म में उतरे हो क्या? यह रात दिन जो तुम इसको जानना है अन्दर से। जिसने उसे अन्दर से अपनी जान को मारे ले रहे हो वो किसके मारे ? क्या श्रीमाताजी जो आता है आप उसको पार करते जाना है वही उसे समझ सकता है। दृष्टि से तो तुम जरा इसे छोड़ो, थोड़ा सा परमात्मा पर छोड़ो। बहुतों को दिखाई देते हैं, बड़े, बड़े करिश्में दिखाई चार दिन बीत गए उसने कहा भई आज तो हम देते हैं, बड़े बड़े लोगों को चित्र दिखाई देते हैं! मुझे मान गए. हम lndia में गए तो सब लोगों ने हम से बहुत से लोग आकर बताते हैं कि उसको चमत्कार हैं। मैं कहती हैूँ बेटे उससे परे रहो। यह सब परलोक, सब मरी हुई चीजें हैं। इससे परे परमात्मा कहा कि तुम तो भईया एकदम पार हो गए और तुम हमारा कार्य करो। तुम हम को रुपया दो और ये करो ।सबने हमें Certificate दिया! मैने कहा मेरे एक अनुभव है। ये एक अनुभव है। इससे परे पास नहीं चलता बेटे क्या करूं? वो तो जो होएगा परमात्मा है, इसे छोड़िए। यह सब कुछ छोड़कर सो होएगा। इसमें किसी की चापलूसी, किसी की निराकार में जब आप एकाकार परमात्मा से होंगे Recommedation कुछ नहीं चाहिए। ये इतना तब इन सब चीज़ों का अर्थ बनेगा जो साकार बनी Ultra modren है कि इस पर किसी का असर बैठी है। नहीं चलता। जो होगा सो होगा, जो नहीं होगा सो इस आनन्द लहरी से लोगों ने बहुतों को नहीं होगा अब जो नहीं हुए वो नाराज हो जाते हैं ठीक भी किया, बीमारियाँ ठीक हुईं। लेकिन जो और मेरे खिलाफ जाकर कुछ कुछ बोलने लग जाते सबसे बड़ी जो चीज हुई है, जिसका मुझे बहुत हैं। कुछ बोलें, अब हम क्या करें जो नहीं हो रहे आनन्द है, कि दस आदमी पार हो गए। सबने तो! हम तो चाहते हैं कि सबको हो, रात दिन मिलकर सामूहिक किया, पार हो गए। अब आप मेहनत कर रहे हैं कि आपको हो जाए। लेकिन 10 Original Transcript : Hindi आप नहीं होते हो तो हम क्या करें? आपकी कहते हैं हम लोग झूठे नहीं। इसको भगवान का रुकावट है। ये भी सोचना चाहिए कि किसी को नाम नहीं देते हैं। उन लोगों का ऐसा है कि उनको कहते है. किसी को नहीं कहते और सब लोग आप चिट्ठी लिख दीजिए तो बो आपको लिखकर कहते हैं कि हाँ हो गया, जितने भी खड़े हैं कहते हैं हो हो गया तो हो और गया सब लोग कहते आपके पास आकर कुछ कर जाएगा, आप आराम भेजते हैं कि दस बजे उतने Time पर कोई आदमी हैं कि इसका सहस्रार चल रहा है, मैंने कहा नहीं से देखते रहना। और बराबर उसी वक्त आपको सब का ही चलं रहा है। इसमें से कोई तो सत्य कुछ लगता है कि कुछ हुआ अपने अन्दर में और होगा। बीमारी को ठीक करना सहज योग का आप ठीक भी हो गए कार्य नहीं। ये जान लेना चाहिए क्योंकि बहुत से है लेकिन तो भी ठीक करने से केवल शरीर ही तो लोग यें कहते हैं उन्होंने भी ठीक किया, उन्होंने ठीक किया है, उससे परम तत्व तो किसी ने नहीं ठीक किया। किया होगा, कैसे किया होगा? पता पाया! परम तो मिला नहीं, ये शरीर तो यहीं नहीं! सहजयोग से सिर्फ कुण्डलिनी की जाग्रति छूट जाएगा और फिर वहाँ जाकर फिर यहीं आना और परमात्मा को पाने की ही बात है और कोई है। और जिन पर बो ऐसे प्रयोग कर रहे हैं वो ये नहीं है और ये कार्य जो है इसका आप जड से भी नहीं जानते, वो भी अबोध हैं, वो भी उनका सम्बन्ध नहीं जोड़िए कभी भी इसका जड़ से बचकानापन है! सम्बन्ध जोड़ करके इसको जड़ में नहीं आप जान सकते। क्योंकि बीमारियों तो हज़ार तरह से ठीक इस्तेमाल कर रहे हैं वही कल उलट कर हमारे हो सकती हैं। आपने सुना होगा डॉक्टर लैंग एक आदमी था, लन्दन में बहुत बड़ा डॉक्टर वो मर जानते थे, नहीं तो अपनी लड़की के अन्दर क्यों गया अकरमात वो मर गया उसकी इच्छाएं अतृप्त नहीं घुसे? वो एक Soldier के अन्दर जाकर क्यों थी। तो एक Soldier था वियतनाम में उसके घुसे? और Spint का देह जो होता है उस पर ये Superego में वो घुस गया । उसको कहने लगे जड़ नहीं होता, इसलिए बहुत कुछ देख सकता है तुम London चलो मेरी लड़की के घर। वहाँ पहुँचे बनिस्वत हमारे। जिसको कि आप Para तो उन्होंने उनसे कहा उनको कहो कि हैं तुम्हारे अन्दर | तो लड़के ने कहा इसका क्या आशीर्वाद कहते हैं जो कूदना होता है जो चीखना विश्वास? तो उन्होंने उसको सब बताया, जो कुछ भी उनके बीच में गुप्तवार्ता Secret हुए थे चो सब होता है सारा Spirit का काम है। उसमें कुछ अच्छे बताए। उसको विश्वास हो गया । उसने कहा तुम Spirit भी होते हैं कुछ Spirit बहुत ही... जैसे हम फिर से मेरा Organisation शुरु करो, . मदद करुंगा क्योंकि यहाँ परलोक में बहुत से महादुष्ट भी हैं। आप उन्हें आज देख नहीं रहे, हो डॉक्टर हैं जो Menifest करना चाहते हैं, जो सका तो बाद में आपको मैं दिखा भी दूंगी, जैसे अवरतरित होना चाहते International Organisation है. सच्चे लोग हैं. समय आजाय तो मैं आपको ये भी दिखा दूंगी। से लोग ढीक भी ए। बहुत हुए वो जानते नहीं है कि जिस Spirit को बो आज त ऊपर आएगे मैं सोचती हैँ Dr Lang थोड़ा सा मैं आया Psychology कहते हैं, जिसे कि आप आत्मा का होता है चिल्लाना होता है और सम्सोहन करना मैं तुम्हारी हैं वैसे Spirit भी हैं । इसमें राक्षस भी होतं हैं, हैं। उनका बडा भारी आज में आपको कुण्डलिनी दिखा रही हूँ। ऐसा , H a 11 Original Transcript : Hindi लेकिन है। उनका वास्तव्य आप देख सकते हैं,उनका कहना चाहिए परलोक। उससे भी उत्थान हो रहे असर आप देख सकते हैं, उनका असर आप देख हैं,वही उत्थान हमारे सहजयोग में सबसे ज्यादा हो सकते है और हर एक धर्म में उनके बारे में लिखा रहे हैं । और जिस आदमी पर ऐसा कुछ हो गया हो है। हिन्दुओं में सुर - आसुरों की बात लिखी है जो उसके लिए बहुत कठिन हो जाता है कि वो है सो है। जब आप positive की बात करेंगे तो सहजयोग में परमात्मा को पाए । इसमें दोष हमारा Ngative [आपको दिखाना ही पड़ेगा कि ये positive नहीं है। सच बात है इसमें हमारा कोई भी दोष है और ये Negative है जो धर्म और अधर्म की नहीं । दोष न आपका है न हमारा है । थोड़ा आपके बात नहीं कर सकता दो हवाई बात है सिर्फ धर्म कर्मों का जरूर होगा नहीं तो आप ऐसी जगह क्यों की बात करने से कैसे होगा?धर्म भी हैं और अधर्म गए जहाँ पर जाकर के आप पर ऐसा दोष लग भी है। उसकी पूरी सारी रेखा है, जो धर्म है वो गया? पूरी सतर्कता में स्वयं ही अपने आप होने अधर्म नहीं हो सकता, जो अधर्म है वो धर्म नहीं हो वाला जीवन का विकास यही सहजयोग है। भूत-प्रेत Spirit, सन्त भी, इनसे आप परम नहीं पा सकते, वो इसका Confussion कलियुग की वजह मरे हुए लोग हैं परम सिर्फ जिन्दा में ही आ से कर दिया, लेकिन ऐसी बात नहीं है, जो Negative सकता है. मरे हुए में गर जाता है तो क्यों वो यहाँ 1. सकता। हैं Negative है. जो positive है वो positive है आ रहे हैं हमारे ऊपर में वहाँ क्यों नहीं बैठते? जो Negative चीज है उसको समझ लेना चाहिए। जिन्दा होना चाहिए। आदमी जब तक जिन्दा नहीं Negative का मतलब है मरी हुई, Dead होगा, सतर्क नहीं होगा, उसकी चेतना जब तक sympathetic में बैठी हुई। वो है, और उस पूरी तरह से जागृत नहीं होगी तब तक उसके Nसgative का असर बहुत ज्यादा उस जगह जब अन्दर सहजयोग नहीं उतर सकता। पूर्ण जागृत होता है जहाँ पर मनुष्य जड़ होता है जैसे बम्बई अवस्था में जो चीज आप पाते हैं वो ही परम है। शहर में हम लोग बहुत जड़ हो गए हैं रत दिन समाधि में लोग सोचते हैं कि ऑँखें ऊपर हो गई पैसों की ठनकार, Election के झण्डे! इन सब गुरु हो गए हम। दो-दो घण्टे बैठे हुए है! यह चीजों में इतना चित्त उलझा रहता है। रात दिन सहजयोग से नहीं होने वाला। ये सब आपका यह पढ़ पढ़ कर और सुन सुनकर मनुष्य का चित्त Subconscious है जिसे कि मैं कहती है मृतलोक, ही नहीं जाता है वहाँ पर। Enquiry ही नहीं हैं, जिसमें आप उतर रहे हैं। इसका कोई भी आपको खोज ही नहीं है! अरे हम क्यों जी रहे है! क्या चिरस्थायी फायदा नहीं है। जिस मनुष्य को परम यही सब करने के लिए? उनके गुण्डे ने वहाँ पमाना है उसको सोच लेना है कि जो मैं सतर्कता में, मारा,उन्होंने जाकर उनकी बुराई करी, उन्होंने पूरी स्वतंत्रता में पाऊँगा वही मैं धाऊँगा। पूरी जाके उनको ऐसा किया! क्या यही सब करने के स्वतंत्रता आपको यहाँ तक किसी भी तरह का लिए हम संसार में आए हैं? मनुष्य का चयन गलत भक्ति भाव मेरे प्रति न हो, बिल्कुल नहीं होना है। इस जड तत्व से बहुत बच कर रहिए लेकिन चाहिए। जैसे एक साधारण सौम्य स्त्री होती है वैसे ये जड़ तत्व तो आपका अपना घिराव है। हैं. इसके ही मैं हूँ। धर गृहस्थी की एक साधारण स्त्री अलावा भी collective subconscious है। जिसे ऐसा ही समझ लीजिए । कुछ विशेष हैं ये सोचना 12 Original Transcript : Hindi ही नहीं । ऐसा ही सोचकर आइए। ये स्वतंत्रता भी जिम्मेदारी भी इतनी बढ़ जाती है। उसका सारा होनी चाहिए। तभी आप पाएंगे चाहे आप दस हों, व्यक्तित्व ही दूसरा हो जाता है । लेकिन आदिकाल चाहे आप एक हों, हमारे लिए काफी है। इसके से ही लोग कहते आए हैं कि माँ से बढ़कर गुरु number से नहीं होता है हालांकि number भी, कोई नहीं है। गुरु उसी को मानिए जो आपसे बड़ा बढ़ाना होगा Number जरूर बढ़ाना होगा इसमें हो, बड़ा हो, जो आपसे बड़ा परमात्मा हो। कोई शंका नहीं । कार्य जोरों में गर हो जाए तो रामदासस्वामी ने गुरु के बारे में ऐसा कहा था कि हो सकता है। हालांकि परम उपर से बहुत अलग गुरु उसे मानिए जो स्वयं तो पारस है ही दूसरों को है। एक नव निर्माण के लिए एक नई चेतना के छूते ही सोना नहीं बना देता उसे, पर पारस बना लिए, एक नए तरह के मानव की इसमें व्यवस्था की देता है। जैसा खुद है वैसा ही दूसरों को बना देता हुई है। इस Para Sympathetic में एक प्रेम है है और इसीलिए ये माँ स्वरूप चीज है माँ बच्चों एक ज्ञान है, एक सौन्दर्य शैली। मनुष्य की रचना में होती है बच्चों के गौरव में गौरव मानती है। होनी ही पड़ेगी और होके ही रहेगी। आप लोगों ने इतनी देर तक मेरा भाषण सुना इच्छा रही कि ये प्रेम और ये ज्ञान एक माँ के अन्दर है, गुरु पूर्णिमा के दिन मुझे यही कहने का है कि से आपको मिले अभी हम लोग ध्यान में जाएंगे इस जन्म में मैं गुरु हो गई, और तो किसी जन्म में इसके बाद में, आप लोग आतीतता से इसमें बैठे। ये कार्य नहीं किया था पहली मरतबा गुरु का अपने विचार, अपने विरोध, इनको छोड़ दें थोड़ी देर कार्य करना पड़ा। शायद वो भी माँ को ही गुरु के लिए । इसलिए कि आपको अपना मंगल और होना पड़ता है। ये कलियुग का मामला है इसलिए कल्याण करना है। अपने साथ अच्छाई है, अपने नितांत परमात्मा की जो भी शक्ति है ये किसी माँ साथ बुराई है, किसी भी एक चीज को पकड़े बैठे के हृदय से बहे, उसी की करुणा और उसी के प्रेम हुए हो तो उसे छोड़ दीजिए थोड़ी देर के लिए । हमें में कुण्डलिनी को संजोया जाए और उस शिखर आपसे कुछ लेना देना नहीं और आपकी स्वतंत्रता तक पहुँचा दिया जाए जहाँ पर कि वो अपने दोलन हमें छीननी नहीं । किसी भी तरह, किसी भी कीमत में अपने आनन्द में, अपने स्थान में विराजित हो! पर मैं आपकी स्वतंत्रता छीनती नहीं । जैसे लोग ये आज हमारे ही भाग्य में है, इसीलिए इस जन्म पागल जैसे किसी के पीछे दौड़ते हैं, हजारों रुपया में ये गुरु का स्थान स्वीकृत किया है। माँ गुरु बन उन्हें दे देते हैं, चीजें दे देते हैं। अरे चीजें लेते जाए, ऐसा कहीं होना बड़ा कठिन है क्योंकि माँ किसलिए हो? गुरु वो जो आपसे कुछ नहीं लेता । अत्यन्त कोमल होती है। गुरु तो मार भी देगा, पीट गुरु को आप क्या देंगे? आप मुझे कुछ नहीं दे भी देगा, डॉट भी देगा, लेकिन माँ एक भी कठिन सकते, आप मुझे Vibration भी नहीं दे सकते, आप शब्द बोलते वक्त उसके हृदय में कचोटती है, को आश्चर्य होगा कि आप मुझे Vibrations भी तकलीफ होती है- बहुत ही, और जब वो देखती नहीं दे सकते! है कि मेरे बच्चे कितनी साधना से आए हुए हैं और इनको किस तरह से इनको संजोकर के, संभाल थी, वो कहने लगी माताजी मैं आपको Vibration करके, प्यार से उस किनारे ले जाना है।तब उसकी दूँ?' मैने कहा देखें दो तो सही। जब वो Vibration 1. इसलिए इस जन्म में शायद परमात्मा की यही एक दिन मेरे पैर में चोट लगी तो एक Doctor 13 Original Transcript : Hindi ० ु० ० ज देने लगी तो चोट की जगह से इतनी तेज उनको Vibration आई कि वो खुद ही ध्यान में चली गई। आपको बहुत आशीर्वाद है और जितने Realized कहने लगी इस जगह से Vibrations आ रहे हैं। लोग हैं उनको विशेष रूप से, और उनसे मेरी और मेरी जो चोट थी वो एकदम से हल्की होने विनती है कि जैसे अपने पाया है दूसरों को देने का लगी। गुरु वो जो आपसे कुछ भी न ले सके, जो पूरा प्रयत्न करें। शिखर पर बैठा हुआ है वो नीचे की ओर बहेगा, उसकी ओर कोई नहीं, कुछ नहीं बहेगा सब है वो लोग आपसे नाराज हो जाएं, गुस्से हो जाएं. अरम मांगिएगा। आज की गुरु पूर्णिमा के दिन मेरा उनको भी समझाने का प्रयत्न करें। हो सकता मारेंगे, पीटेंगे। ये कुछ भी नहीं हैं, इससे कहीं समझ की बात है। गर मैं किसी से कहती हैँ बेटे मुझे मत दो अधिक हमने सहा है इसलिए कुछ भी नहीं । क्योंकि ये सब ढकोसला है, आप मुझे कुछ भी नहीं वाद विवाद करेंगे, आपको नहीं मानेगे, कोई हर्ज दे सकते। उल्टे आप कुछ मॉँगते हैं मुझसे तो सारा नहीं। छोड़ दीजिए उन्हें. जो आपको मानते हैं का सारा व्यक्तित्व जो है वो खौल उठता है, अन्दर से सारी की सारी प्रभावशाली शक्तियों दौड़ने लग आपको देना है, आप दे सकते हैं, सब मेरे बच्चे । जाती हैं कि किस तरह से प्रेम से मैं इस बच्चे को मेरा प्यार संसार में सब जगह पहुँचे और घर घर सम्हालू। जरा सा कोई कुछ मांग ही ले ! परम, दीप जलें। उन्हीं पर यह अनुग्रह करें यहाँ तो केवल देना है. बहुत बहुत आप सबका धन्यवाद 14 MARATHI TRANSLATION (Hindi Talk) सारांश (Excerpt) Scanned from Marathi Chaitanya Lahari गुरू पूजा प. पू. श्रीमातार्जीचे भाषण, मुंबई १९७२ टिसी सहजयोगाचा एक अभिनव असा आविष्कार होत आहे. जे सत्य आहे जे आहेच' त्याचा आविष्कार कसा होतो हे समजून घ्या. कोलंबस हिंदुस्थान शोधायला बाहेर पडला. तेव्हाही हिंदुस्थान होताच; नसला तर शोध कशाचा घ्यायचा? तसेच सहजयोग होताच, पण त्याचा अनुभव आता तुम्हाला घ्यायचा आहे, काही जणांना मिळालाही आहे. सहजयोग हा त्या परमतत्त्वाकडे जाण्याचा एक मार्ग आहे; एक व्यवस्था आहे; एक प्रणाली आहे; मानवजातीला उन्नत स्थितीवर येण्यासाठी जीवनाला नवीन दिशा देण्यासाठी ही एक व्यवस्था आहे. ज्यामध्ये मानव या विश्वव्यापी चैतन्याची ओळख करून घेऊ शकेल आणि ते परमचैतन्य आत्मसात करू शकेल. याच ली परमतत्त्वाकडून सारी सृष्टी चालवली जात आहे वे त्याच्यातूनच मानव जन्माला आला आहे. फार प्राचीन कालापासून याचा शोध चालत आला आहे. त्याच्याबद्दल बरेच काही लिहिले गेले आहे; प्रेम, पैसा, सत्ता अशा विविध क्षेत्रांमध्ये मानवाचा हा शोध चलत आला आहे. तरीही मानव अजून स्वत:ला नीट ओळखू शकला नाही. तसे पाहिले तर हा एक आनंदाचा शोध आहे. पण मग कुणी संपत्ती मिळाली की आनंद मिळेल असे समजून पैशाच्या मागे लागले, पण त्याचबरोबर ज्यांनी अमाप संपत्ती मिळवली त्यांनाही दुःखापासून सुटका मिळाली नाही; काही लोकांनी तर या निराशेपोटी आत्महत्या करून घेतली. असे करता करता कुठेच आनंद मिळाला नाही म्हणून लोक धर्माच्या मागे लागले. धर्माच्या पाठीमागे लागल्यावरही त्यांचे चित्त बाहेरच्या गोष्टींमधेच अडकून राहिले आणि त्यांना खरी 'स्व' (स्वत:ची) ओळख झाली नाही. हे असे का होते? अपरिचीत असतो आणि त्यामुळे त्या 'स्व चे वैभव, कारण माणूस खर्या स्व बद्दल ऐश्वर्य, महानता, प्रेम हे त्याच्या लक्षातच येत नाही. त्या अवर्णनीय आनंदाला तो पारखाच राहतो. मानव स्वत:च आनंदस्वरूप आहे व तोच परमानंद आहे. अर्थात हे सुद्धा बहुतेक वेळा शाब्दिकच राहते. बोलाची कढी, बोलाचाच भात म्हणतात त्याप्रमाणे हे होऊन जाते. हे असे अनादि कालापासून चालत आले आहे. याला कारण मानवाचा आत्मसाक्षात्कार हा तुमचा पुनर्जन्म आहे हे लक्षात न घेता आत्मसाक्षात्कारानंतरही तुमचे चित्त व मागण्या तुमच्याच कुटुंबाच्या समस्यांमध्ये पैशामध्ये विचार सदैव 'मना मधून होत असतो व त्या मनाच्या तो पलीकडे आपल्याला जायला पाहिजे. आता माझे भाषणही नुसते शब्द समजून राहू नका. त्यातून तुम्हाला परमात्मा समजणार नाही. म्हणून जे आपल्याला शोधायचे आहे व मिळवायचे आहे तेथपर्यंत आपण मनाने पोहचू शकणार नाही. तीच गोष्ट बुद्धीची. म्हणून जे परमतत्त्व आपल्याला जाणायचे आहे त्याच्यासाठी मन-बुद्धीच्या पार झाले पाहिजे. कारण मन-बुद्धी चालवणारी तीच शक्ती आहे. ही शक्ती जाणण्यासाठी कितीही उपदेश ऐका, वाचन करा वा प्रयत्न अंडकून राहिले तर काय फायदा? तुमचे चित्त सतत चैतन्याबरोबर राहिले पाहिजे. करा, तुम्हाला ती जाणता येणार नाही. वा त्याचा अनुभव येणार नाही. नानक, कबीरासारखे संत याच शक्तीबद्दल बोलले. हा एक तुमच्या आतमधला अनुभव आहे. म्हणून वर म्हटल्याप्रमाणे कोलंबसला हिंदुस्थान सापडला नाही. याचा अर्थ हिंदुस्थान नव्हता असा नाही किंवा त्याच्याकडे काही कमी होते असा ही नाही. त्याच्यानंतर ज्यांना 15 Marathi Translation (Hindi Talk) शोध लागला त्यांनाही हिंदुस्थानात काही कमी होते है परमात्म्याची महाप्रेमशक्तीच करू शकते; जोपर्यंत ही प्रेमशक्ती दाखवायचे नव्हते. तुम्ही अलग-अलग होऊन याचा विचार मानवामध्ये उरतणार नाही तोपर्यंत कुंडलिनी उठणार नाही. विशेषतः केलात तर मी काय म्हणते हे तुमच्या लक्षात येणार नाही. मानवाचा नाभी व अनाहत चक्रांमधील पोकळीमधून हे कार्य झाल्याशिवाय हा शोध जन्म जन्मांतरापासून चालत आला आहे. वास्तविक कुंडलिनी उठणार नाही. त्याच्या आड येणारे हे अहंकार व जन्म-मृत्यू हे एक प्रकारचे जाणे-येणे आहे, हिंदू-मुस्लिम वगैरे प्रतिअहंकार तुम्हाला परमात्म्यापासून अर्थात स्व पासून दूर ठेवतात. हे सर्व मी कुणाच्या विरोधात बोलत आहे असे समजू नका. त्याचा सारखे वाद फक्त राजकारण म्हणून चालतात. सहजयोग हे काही राजकारण नाही. पूर्वजन्मी हिंदू हिंदूच होते किंवा मुसलमान मुसलमानच होते असेही नाही. म्हणून हा घेता आत्मसाक्षात्कारानंतरही तुमचे चित्त व मागण्या तुमच्याच शोध त्या स्तरावरच झाला पाहिजे. म्हणजे खरा अनुभव येईल. ही कुटुंबाच्या समस्यांमध्ये पैशामध्ये अडकून राहिले तर काय फायदा? सूक्ष्म स्तरावर घडणारी घटना आहे हे नीट लक्षात घ्या. जे सूक्ष्म तुमचे चित्त सतत चैतन्याबरोबर राहिले पाहिजे. असे लोक आहे, तरल आहे त्याचा जडाशी काही संबंध नसतो. परमात्मा देवतास्वरूप वंदनीय आहेत; फालतू गोष्टी, वादविवाद करण्यात खरं पाहिल तर काहीच देत नाही; तुम्हाला घर, जमीन-जुमला, त्यांना रस नसतो; इथे नाव-पैसा-प्रसिद्धी अशा गोष्टी मिळवायच कुटुंब असल्या गोष्टीही परमात्मा देत नाही; त्यामध्ये परमात्म्याला काम नाही. मनाचे परिवर्तन होणे एवढ एकच ध्येय आहे. कुंडलिनी काही स्वारस्य नाही. म्हणजे परमात्म्याला समजून घेण्यात आपण तुम्हाला सर्व ताप-त्रास-आजारापासून मुक्त करते. सहजयोग हा काही तरी चूक करत असतो. जे परम आहे त्याला परम राहण्यातच कुंडलिनी -जागृतीचा आणि परमात्म्याशी योग करून देणारा मार्ग रस असतो हे नीट लक्षात घ्या. परमतत्त्व मिळवण्यासाठी कुंडलिनी- आहे. जे लोक पार झाले आहेत त्यांना विशेष सांगणे असे आहे योग आवश्यक आहे अशी एक समजूत आहे. पण ज्यांना सिद्धी की याचा जडाशी कधीही संबंध लावू नका; पुरी सतर्कता बाळगून प्राप्त झाली त्यांना कुंडलिनी-जागृतीतूनच ती मिळाली हे मात्र आपणच आपल्या जीवनाचा विचार म्हणजेच सहजयोग करा. खरे आहे. परमतत्त्वाशी योग होणे महत्वाचे आहे. कुंडलिनी तुमची आई आहे; ती फक्त तुम्हाला पुनर्जन्म नाही. तुमच्यामधील चेतना शुद्ध व पूर्णपणे जागृत व्हायला हवी व देते; तुम्ही जे काही बुद्धीमधून मिळवले आहे त्यापेक्षाही ती अधिक चैतन्याच्याच संपर्कात सर्वकाळ राहण्याचा प्रयत्न करा व तशी समजदार आहे. ती प्रेमाचा सागर आहे; तुम्हाला चुकीच्या मार्गाकडे सवय लावा. कुंडलिनी जागृतीनंतर तुम्ही काहीतरी विशेष मिळवले ती येऊच देणार नाही तिची सर्व रचना परमात्म्याने खूप कुशलतेने पाहिजे. नेहमीचे कुटुंब, पैसा, संस्कार, वाद-विवाद सर्व सोडून केली आहे. बालक जन्माच्या आधी मातेच्या उदरात असतो द्या. परम मिळवण्यासाठी माणूस पूर्णपणे जागृत असयला हवा. आत्मसाक्षात्कार हा तुमचा पुनर्जन्म आहे हे लक्षात न भूतपिशाच्य करणार्यांकडून तुम्हाला काहीही मिळणार तेव्हा जडतत्त्वाकडून त्याचे मन-बुद्धी-अहंकार इ. तयार होतात, पण त्यामध्ये जो प्रकाश येतो तो मस्तकातील ब्रह्मरंध्रातून येतो मान मिळाला. मातेला गुरू होणे अवघड आहे. कारण ती फक्त आणि शेवटी मणक्याच्या शेवटच्या त्रिकोणाकार अस्थीमध्ये प्रेमस्वरूप आहे. मुलांचा गौरव यातच आनंद मिळवा. गुरुला स्थिराऊन तीन नाडी-संस्था तयार होतात. त्रिकोणाकार तुम्ही काही देऊ शकत नाही. काही मागायचे असेल तर जे परम अस्थीमधील शक्ती हीच कुंडलिनी. या शक्तिबद्दल खूप लिहिले आहे ते मागा आणि है प्रेम दूर दूरवर वाटा. गेले आहे. पण ती जागृत होणे हा भाग महत्वाचा आहे. कुण्डलिनी आज गुरुपोर्णिमेच्या शुभदिवशी 'मला गुरू होण्याचा सर्वांना आनंत आशीर्वाद. जागृत होण्याची मुख्य खूण म्हणजे आपली बुबुळे मोठी होणे. ही स्पंदनाकार जागृत होत असल्यामुळे शास्त्रीय उपकरणांवर दिसू शकते. ते तुम्ही पाह शकता व त्याची प्रचीती घेऊ शकता. कुंडलिनी जागृत झाल्यावरच तुम्ही पार होऊ शकता. अर्थात हे 16 ---------------------- 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page0.txt Sarvajanik Karyakram Date 1st June 1972 : Place Mumbai : Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 14 Hindi English Marathi || Translation English Hindi 15 - 16 Marathi 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page1.txt ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Chaitanya Lahari वास्तविक जो चीज स्थित है, जो है ही वह धर्म की ओर मुडता है और धर्म की ओर जब उसका अविष्कार कैसे होता है? जैसे कि कोलम्बस मुडता है तब भी वह बाहर ही खोजता है। हिन्दुस्तान खोजने के लिए चल पड़ा था तब क्या हिन्दुस्तान नही था? यदि नहीं होता तो खोज खोजता है, इसलिए अपने से मनुष्य भागता है। हर किस चीज की कर रहा था। सहजयोग तो है ही समय अपने से मागता है दो मिनट अपने साथ नहीं पहले ही से है। इसका पता सिर्फ अभी लगा है बैठ पाता। उसको अगर दो मिनट अपने साथ बैठने सहजयोग, ये परम तत्व का अपना तरीका है। को कहो तो वो कहता है प्रभु ये क्या मेरे लिए ये यह एक ही मार्ग है, मानव जाति को उत्क्रान्ति सजा हो गई! जिसको आजकल कहते हैं। आदमी (Evolution) के उस आयाम में, उस (Dimension) अपने से इतना क्यों उलझा हुआ है? सोचने की में पहुँचाने का एक तरीका है, एक व्यवस्था है, बात है कि मनुष्य अपने से इतना क्यों जोर से भागा जिससे मानव उच्च-चेतना से परिचित हो जाए. चला जा रहा है? क्योंकि वो अपने से अपरिचित है, उस चेतना से आत्मसात हो जाए जिसके सहारे ये अपने सौन्दर्य से अपने वैभव सं, अपने ज्ञान से और सारा संसार, सारी सृष्टि और मानव का हृदय भी अपने प्रेम से अपरिचित आनन्द की खोज बाहर की चल रहा है। बहुत कुछ इसके बारे में लिखा गया और करते हुए दौड़ रहा है। आनन्द बाहर है नहीं, है, पुरातन कालों से ही खोज होती रही, मनुष्य यह अन्दर है, आपमें है, आप स्वयं आनन्द स्वरूप खोज कुछ रहा ही है हर समय, चाहे वो पैसे में हैं। आप परमात्मा स्वरूप हैं ऐसा सब लोग कहते खोज ले, चाहे वो सत्ता में खोज ले, चाहे वो प्रेम में हैं। सिर्फ बातें करने से यह बात पूरी नहीं होने खोज ले, वो किसी न किसी खोज की ओर दौड़ वाली है। मराठी में कहते हैं कि.। चाहे हम रहा है। लेकिन उस खोज के पीछे में कौन सी आपको कहें कि आप निराकार को खोजें, चाहे कारण यह है कि जो वो खुद है स्वय है वो प्यास है वो शायद वो जानता नहीं। इसके पीछे में साकार को खोजें तो सब बाते ही बातें तो हो गईं, सिर्फ आनन्द की खोज है, आनन्द की खोज में वो हजारों बातें हो गई, करोड़ों किताबें लिखी गईं, न सोचता है कि बहुत सी गर सम्पत्ति इकट्ठा कर ले जाने कितने ही जीवन बर्बाद हो गए, इन्सान की तो उस आनन्द में लय हो सकता है लेकिन ऐसे खोज का कोई अन्त नहीं! मनुष्य जो कुछ भी भी देश अनेक हैं जिन्होंने सम्पत्ति में बहुत कुछ खोजता हैं अपने मनसे बो मन के दायरे में प्रगति कर ली, बहुत कुछ पा लिया है और अत्यन्त दुखी है। आनन्द तो दूर रहा, हजारों लोग वहाँ है वो इस मन से समझने वाली है नहीं। अब जैसा आत्महत्याएं कर रहे हैं! सारी खोज के पीछे में मेरा भाषण है ये भी आपके लिए सिर्फ बातचीत ही आनन्द की प्यास आपको घसीटे चली जा रही है हैं ये भी एक बातचीत ही है क्योंकि इस बातचीत किसी अज्ञात की ओर, सारी ही खोजों में ढूँढ़ते-ढूँढ़ते से आप उस परमात्मा को नहीं जानेंगे। जितनी भी जब मनुष्य हार जाता है, और कहीं मिलता नहीं तो मैं इस पर बात करती जाऊँ उतना ही आपके मन Limitations में खोजता है। मन से परे की जो बात ন 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page2.txt Original Transcript : Hindi पर इसका बोझा बढ़ता जाएगा। अगर में कहूँ कि उसे खोज नहीं पाए थे। गर कोलम्बस हिन्दुस्तान कोई बोझा न रखो तो उसका भी ोझा बनता नहीं खोज पाया था तो इसका मतलब ये नहीं कि वो कुछ कम था। और बाद में जिन लोगों ने उसे जाएगा। इसी तरह की च्यवस्था परमात्मा ने हमारे अन्दर कर दी है कि मन से हम जो भी करेंगे वह खोज लिया है वो उन्होंने उसे कोई नीचे गिराने के बोझिल हो जाएगा और उस बोझे के नीचे हम दबे हुए उड नहीं सकते वहाँ पर जहाँ पर हमें जाना जब उसे अलग-अलग होकर सोचते हैं तब इस है इसीलिए खोज आज तक अधूरी ही रही है। तरह से बात बहुतों के दिमाग में आती है कि लेकिन नव निर्माण की बात मैं आप से करने माताजी कुछ अलग ही बात कह रहीं हैं। नहीं। मैं वाली हूँ सिर्फ बात ही नहीं इसका अविष्कार, जो इन सब खोजों की खोज का ही पता आपको दे खोज निकाला है। उत्क्रान्ति के मार्ग में ऐसा नहीं रही हैं। आज तक अत्यन्त कष्ट उठाकर के न होता रहा है कि कोई प्राणी अति विशेष जाने कितने मानवों ने इस पर ध्यान दिया । Specialization में या विशेषज्ञ हो गया तो वो गिर जाता है, वो खत्म हो जाता है, इसी तरह से मनुष्य दिया, बड़े बड़े Scientists ने भी दिया। वो भी एक का भी हुआ जा रहा है कि इतना ज्यादा आपस की हद तक जाकर के हार जाते हैं। बहुत बहुत सन्त जो विरोध और Competiton चल रही है उससे और जो महन्त हो गए, Realized हो गए और मनुष्य ने भी अपने दिमाग को इतना ज्यादा विशेषज्ञ उन्होंने भी पा लिया लेकिन दे नहीं पाएं। इसका कर लिया है कि वो फटा चला जा रहा है उसका कारण समय है। परमात्मा के लिए समय अनन्त लिए नहीं खोजा। ये सामूहिक खोज है आप भी Psychologists ने भी दिया. Biologists ने भी दिमाग और एक अब नया तरह का मानव आने की है हम लोग उसे ऐसा सोचते हैं कि जो लोग पीछे जरूरत है जो मन से परे उस शक्ति को जान ले हो गए और जो लोग आगे हो गए और जो लोग जो इस मन को भी चलाता है और इस हृदय का मर गए जो बड़े हो गए। कौन मरा है मैं ये पूछना भी स्पन्दन करता है। उस शव्ति को जानने के चाहती हैँ ? कोई मरता ही नहीं । जितने भी मरते बारे में कितनी भी बातें आप करिए और कितना ही हैं परलोक में बैठते हैं और वापिस यहाँ लौट आते इस पर प्रयत्न करे आप वहाँ तक नहीं पहुँच हैं। प्राणी मात्र से कुछ कुछ लोग मनुष्य हो जाते सकते। ये बात नि सन्देह है। ऐसे तो सभी ने यही हैं लेकिन अधिकतर मनुष्य परलोक से वापिस यहाँ लिखा है जो मैं कह रही हूँ। कोई भी ऐसी विशेष पर और यहाँ से परलोक! यही आना जाना लगा बात तो कह नही रही हूँ। नानक जी को आप पढे, हुआ है। कोई मरता है तो हो सकता है कि आपमे कबीर दास जी को आप पढ़ें, आप वशिष्ड को पढे, से जो आज यहाँ बैठे हुए हैं ये भी जन्म जन्मातर गुरुओं के गुरु जनक के बारे में आप पढ़ें, अपने की खोज लिए हुए आज यहाँ पहुँचे हुए हैं और देश में छोड़ो, बाहर के देशों में भी हजारों लोगों को उसको पा सकते हैं अगर आप पा सकतें हैं तो जो पार हो चुके हैं हजारों वर्षो से ऐसा ही लिखते उसमें इतना वाद विवाद क्यों? एक साधारण सी आए हैं यही लिखते आए हैं जो मैं कह रही हूँ कि बात है, मुझे बड़ी बचकाना सी लगती है, बहुत ही जो पाना है अकस्मात अन्दर होता है। लेकिन चो बचकाना सी बात है कि लोग हर एक चीज का भी बेचारे कहते ही रह गए क्योंकि शायद वो भी राजकरण बना लेते हैं एक माँ खाना खाने को दे 3 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page3.txt Original Transcript : Hindi मिल जाए। उसमें परमात्मा को कोई भी Interest रहीं हैं उसका भी राजकरण बना लेते हैं, कैसे कार्य चलेगा? ये राजकरण नहीं है। ये तथ्य है, ये सत्य नहीं है। हमने परमात्मा को समझने में ही गलती कर है। एक बहुत बड़ी खोज है। यहाँ पर जो लोग Realized लोग बैठे है वो समझ रहे हैं, में क्या दी है। परम तत्व को परम ही देने में Interest है। कह रही हैं। धर्म की खोज में मनुष्य परलोक ही ये बात आप लिख डालिए। और इस पर भी लोग तक पहुँच पाया है. अभी तक परम तक नहीं पहुँच सब बात करते हैं कि परम तत्व जो है वो पाया। और जो परम तक पहुँचे भी थे वो परम को कुण्डलिनीयोग से पाया जाता है, ऐसा भी बहुत नीचे नहीं ला सके और लोगों के लिए ये बात सत्य लोग लिखकर के गए। लेकिन कुण्डलिनी योग से है जैसे आपके अनेक जन्म हुए हैं मेरे भी अनेक कोई सिद्धि पाई जा सकती है ऐसी बात कहीं भी जन्म हुए हैं इन सब बड़े-बड़े खोजने वालों से लिखी नहीं गई है। जिन्होने सिद्धियों पाई है वो मेरा भी बहुत नजदीकी संबंध रहा है। और वो लोग नहीं लिखते कि कुण्डलिनी से सिद्धियों आती हैं, जितने मेरे अपने हैं शायद आप लोगों के नहीं हैं। कभी भी नहीं । कुण्डलिनी आपकी माँ हैं, आपके जो लोग बड़े-बड़े झण्डे लगाते हैं कि हम मुसलमान अन्दर बैठी हुई हैं, आपको पुनर्जन्म देने के लिए । हैं, हिन्दु हैं, ये हैं, वो है, वो सिर्फ एक वकीली वो आपको सिर्फ पुनर्जन्म देंगी, आपको सिद्धियों लेकर के झूठमूठ से आए हैं उनके पास कोई भी देकर के परलोक में फँकने वाली वो मूर्ख मां नहीं guarantee नहीं है कि पिछले जन्म में हो सकता है। जितनी समझ आपके पास है उससे कहीं है जो हिन्दू है वो मुसलमान रहा हो, जो मुसलमान अधिक समझदार है वो, कहीं अधिक प्रेममय है। वो है वो इसाई रहा हो। जब जन्म जन्मांतर की बात आपकी गलत जगह में, असत्य में ढकेलने वाली है, जब अनन्त की बात है, तो सोचना भी उसी दुष्ट माँ नहीं है । कुण्डलिनी के योग से जब तक Level पर, उसी स्तर पर होगा। वो पर ऐसा है कि परमतत्व की पहचान नहीं होती है तब तक वो कुण्डलिनीयोग नहीं है। और वही सहजयोग है। और इसकी व्यवस्था कितनी खुबसूरती से परमात्मा ने हमारे अन्दर की है, वो भी एक समझने का जो कुछ परम है वो जड़ नही, जो कुछ परम तत्व है वो जड़ नहीं। जो कुछ कठिन है वो gross नहीं, जो सूक्ष्म है वो जड नहीं। इस बात को आप ठीक से समझ लें। वो जड़ में प्रकाशित हो सकता है की बात है। जब बच्चा माँ के पेट में आता है तो किन्तु परम जड़ में Interested नहीं है, उसमें कोई जड़-तत्व से उसका सारा मन, बुद्धि चित्त, अहंकार दिलचस्पीं नहीं है। जैसे कि बहुत से लोग मुझे बताते हैं कि वे एक साधू-सन्त थे वो परमात्मा से प्रकाश आता है बो माथे के तालू में से जिसे क्रि कुछ माँग रहे थे और इनको परमात्मा ने दें दिया। Fontanelle Bone अंग्रेजी में कहते हैं और नीचे दिया होगा, लेकिन परमात्मा ने नहीं दिया, ये मैं उतरता है और अपना Brain जिसका आकार बता सकती हैं । परमात्मा को इसमें कोई भी त्रिकोणाकार एक त्रिकोण के जैसा है उसमें से यही Interest नहीं है कि आपके इतने बच्चे पैदा शक्ति गुजरते वक्त तीन हिस्सों में बैट जाती है । हो जाएं या ये सब परमात्मा ने किस खूबी से किया है ये जानने घर मिल जाए, आपको दुनिया भर के ऐशो आराम के लिए यहाँ पर कोई डॉक्टर हो तो वो समझ वो सब बना देता है लेकिन उसके अन्दर जब आपको ज़मीन मिल जाए, आपको 4 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page4.txt Original Transcript : Hindi सकता है। इसी को हम Sympathetic और कह रही हैूँ, कि सारा Sympathetic Nervous Parasympathetic Nervous System कहते हैं। System सुषुम्ना नाड़ी है जो कि बीचों-बीच है हमारे शरीर के अन्दर ही दो ऐसी शक्तियाँ विराजमान और उसकी पहचान एक है कि जब कुण्डलिनी हैं कि जिसके बारे में हम बहुत कुछ कम जानते हैं उठती है तो आँख की पुतलियाँ बड़ी हो जानी और जिसके बारे में हमें पता लगाने में बड़ी चाहिएं। ये तो साधारण बाहर की पहचान है किसी दिक्कतें होती हैं खासकर के Parasympathetic भी 'doctor" से आप पूछ ले कि जब para Nervous System के बारे में। अपने योग शास्त्र sympathetic nervous system activate होती में इसे सुधषुम्ना, ईडा और पिंगला ऐसी दो नाडियां बताई हैं। ईडा और पिंगला ये दोनों ही अपने शरीर भी हम आपको दिखा सकते हैं अगर आपकी नजर में Sympathetic Nervous System का उद्भव खुली हुई हो तो क्योंकि आपको तो हर एक चीज करती हैं। माने उसका जड़तत्व जो है वो का कोई न कोई proof ही देना पड़ता है नहीं तो Sympathetic Nervous System है। अब ऐसा कुछ समझ में नहीं आती बातें। इसका भी एक समझ ले कि परमात्मा ये Petrol अपने सिर में यहाँ proof है कि गर आप हमारे किसी कार्यकरम में से भर देते हैं और Petrol भरते वक्त वो कुछ ऐसी आए तो आज ही आपको दिखा देंगे कुण्डलिनी घटना घटित होती है कि प्रिज्म के अन्दर से का स्पन्दन भी आप देख सकते हैं। आप जानते हैं गुजरने वाले उनके किरण आपस में इस तरह से कि सबसे पहले त्रिकोणाकार अस्थि पर कभी भी आकर के और फिर मुड़ जाते हैं, जिसे Reflect कोई स्पन्दन होता नहीं । बो हम दिखा सकते हैं होना कहते हैं। और फिर नीचे जाकर के उनकी आप गर देखें कि त्रिकोणाकार अस्थि में स्पन्दन ईडा और पिंगला, है, फिर धीरे धीरे स्पन्दन ऊपर की ओर जो बराबर बीचों बीच शिखर पर से बीचों बीच उठता है और इसके साथ-साथ बीच-बीच में उतरने वाले किरण, आपकी कुण्डलिनी बन करके किसी -किसी जगह ज्यादा स्पन्दित होता है। वही जो त्रिकोणाकार अस्थि, अपने मज्जा तन्तुओं के अपने केन्द्र हैं। ये आपको दिखाया जा सकता है नीचे बना हुआ है, उसमें वास करती है इससे एक और इसको आप देख सकते हैं और उसकी प्रचीति बात तो जाहिर हो गई कि हमारी कुण्डलिनी जो देख सकते हैं । जब कुण्डलिनी सुषुम्ना से उठेगी है वो ऐसी जगह बैठी हुई है जिसका सम्बन्ध सेक्स तभी आप पार हो सकते है। लेकिन इसके लिए से कुछ नहीं है। अब आप गर किताबें पढ़़े तो परमात्मा ने न जाने क्यों एक बड़ी जबरदस्त कुण्डलिनी शास्त्र पे तो आप सब जान जाइएगा कि condition लगा दी है। एक बड़ी भारी अटकल है ऐसा होता है, वैसा होता है, ये है, वो है। लेकिन इसमें, जो देना ही पड़ता है। वो यह कि कुण्डलिनी कुण्डलिनी को उठाने वाले, वो बहुत कुछ मुझे भी सुषुम्ना पर तभी आएगी जब परमात्मा का असीम मिले हैं और मैनें भी जाने हैं वो सब Sympathetic प्रेम उस आदमी में उतर पड़ेगा जब तक वो प्रेम से आपको ले जाते हैं, सुषुम्ना से उठाते नहीं हैं। मनुष्य में उतरेगा नही, कुण्डलिनी उठने वाली नही उसकी एक पहचान है, आप में से गर कोई चाहे आप कुछ कर लें। वो नाराज हो सकती है, Doctor होगा तो समझ लेगा इस बात को जो मैं गुस्सा हो सकती है। लेकिन कुण्डलिनी कभी भी है तो पुतलियाँ "dilate" होनी चाहिएं। और बाहर ऐसी दो नाडियाँ बनती हैं और होता 1 5 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page5.txt Original Transcript : Hindi नहीं उठ सकती है जब तक वो असीम प्रेम सुषुम्ना से भरा गया था, उसका गेट बन्द हो गया अब के अन्दर जगह बनी हुई है, खास इसकी जगह हम अलग हो गए, अब हमें लगा कि भई हम कोई बनी हुई है, हमारे नाभि चक और अनहत् चक के हैं! अब अहंकार शुरु हुआ, हमें लगा कि हम हैं। बीच में एक बड़ी सी जगह बनी है। जब तक अब यही है भागने का, अपने से भागने का कारण उसके अन्दर ये प्रेम उतरेगा नहीं तब तक सुषुम्ना है क्योंकि हम जो हैं, हमको हम जानते ही नहीं कि से यह प्रवाह उठ़ने वाला नहीं। जैसे समझ लीजिए हम क्या हैं आप मेरी ओर इतना चित्त लगाकर के कि दो सीढियां हैं और बीच में एक सीढ़ी है, उस जो सुन रहे हैं मैं आपकी ओर अपना चित्त नहीं सीढ़ी में और हममें कुछ अंतर है । क्या ? इस लगा सकती। मैं कहूँ आप अपनी ओर चित्त लगाएं अन्तर को आप किसी भी तरह से लॉघ नहीं पा रहे तो आप लगा ही नहीं सकते हैं क्योंकि आप बह है, उसमें कोई पुल नही है जिसको आप लाघकर गए हैं उस प्रेम में जो आप है एक जो प्रतिहंकार जाएं। और ये दो सीढ़िया बराबर ईडा और पिंगला है, Super ego है, उस पर बोझे जितने भी हमारी नीचे जमीन पर लगी हुई हैं, Sympathetic ओर से बढ़ते जाते हैं, हर तरह के बोझे, उसमें आप Nervous System की Left और Right ये दोनों कह सकते हैं कि इस तरह के बोझे जिसमें हम ह आप को सिखाते है ये करो, वो करो, ऐसा नहीं ही जमीन पर लगी हुई हैं और बीच वाली अधान्तरी लटकी हुई है जो परम में पहुँचाती है। अब Sympathetic Nervous System की जो दोनों जाना चाहिए. उधर नहीं जाना चाहिए, ये नहीं सीढ़ियाँ हैं, अब अगर कोई Psychologist हो तो खाना, वो नहीं खाना चाहिए, इस तरह की चीजें या मेरी बात समझ सकता है, वो एक जो Left Hand ऐसा कहें कि हम बड़े बड़े भाषण देते हैं लोगों को की तरफ से है दाहिनी ओर है वो आपको पहुँचा कि आपको हिन्दुस्तानी बनना चाहिए., आपको जापानी देती है, Ego में, अपने अहंकार में, और जो Right बनना चाहिए, आपको इससे नफरत करना चाहिए. Hand Side में है वो आपको पहुँचा देती है आपके उससे नफरत करना चाहिए, हम हिन्दु है, हम Super ego मे, प्रतिअहकार में । ये दोनों मिलकर मुसलमान के हमारे माथे पर छा जाते हैं, जैसे कि कोई Conditionings जो है ये बौझ हैं उससे यह Super Balloon न हो! इस तरह से ऊपर आ जाते हैं ego दब जाता है। और जो अहंकार है वो ये कहता और आकर के इस जगह जहां हमारा तालू होता है नहीं हम तो ये हैं, हमें ये करना चाहिए, वो करना है, उस पर आकर के दोनों मिल जाती हैं कभी चाहिए। जो कहता है नहीं करना चाहिए वो तो कभी तो ये पूरे सारे सिर पर ही छा जाते हैं। कभी Super ego है और जो कहता है करना चाहिए वो तो प्रतिअहंकार जबरदस्त होता करना चाहिए, वैसा नहीं करना चाहिए, इधर नहीं हैं, हम इसाई हैं, अनेक तरह के सब है और कभी ego है। असल में हम न तो कुछ नहीं करते हैं अहंकार। जो भी ज्यादा जबरदस्त होता है वो और न तो कुछ करते हैं। करने वाला तो कोई और हमारे दिमाग पर छाया हुआ है और आकर के बो ही है। बैंकार ही में बचकानापन है। करने वाला हमारे इस मार्ग को रोक देते हैं, बन्द कर देते हैं अपना काम तो करता ही है और करेगा ही लेकिन अब जो Petrol हमारे अन्दर Para Sympathetic यही जड़ता हमारे अन्दर दोनों हैं कि हम उस Nervous System से मरा गया था, जो कुण्डलिनी Petrol को इस्तेमाल करते हैं। इन दोनों ईडा और 1 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page6.txt Original Transcript : Hindi पिंगला से अपने Sympathetic Nervous System परमात्मा को पाने का अधिकारी है । ऐसा उन्होंने से, इससे हम अपने को Conditioning कर लेते हैं, साफ-साफ कहा है। लेकिन कौन पढ़ता है उनको? कोई पढ़ता जो नहीं ना! प्रश्न तो ये है कि हभ अब बीचोंबीच सुषुम्ना नाड़ी है। अब बहुत से लोग सभी को पढ़ते है और उसमें से उनको ज्यादा ही नहीं। इनके विरोध में बोलते हैं, उनके विरोध में बोलते और मालूम भी है तो थोड़ा बहुत मालूम है। जो हैं। भाई मैं किसी के विरोध में नहीं बौल रही हूँ। अपने को बहुत हिन्दु कहलाते हैं उनको पहले लेकिन तुम तो गलत सीढ़ी पर चढ़ गए न, उससे आदिशंकराचार्य को पढ़ना चाहिए। आदिशंकराचार्य तो उतारना पड़ेगा ही, जो बीच की सीढ़ी में तुम्हें ने ही तो हिन्दू धर्म की संस्थापना करी थी, फिर आदिशंकराचार्य को क्यों नहीं पढ़ते है? दुनिया भर मेरी समझ में नहीं आता कि इसमें किसी से के लोगों को पढ़ते हैं, उनको क्यों नहीं आप पढते? विरोध करके मुझे क्या करना है? मैं तो आपको उनको आप जानते क्यों नहीं? उनमें मुझमें जो थे बहुत ही गुरुजनों से करोडो में एक दो होते हैं मैं कहती हूँ करोड़ो में मिलने जाती हैँ, उनसे बात करती हूँ कि आप कर लाखों तो है हीं । ये आशावाद का अन्तर नहीं है क्या रहे हैं? कुछ करने से परमात्मा नहीं मिल यह समय का अन्तर है समा ऐसा है। कलियुग सकता। इन लोगों से कुछ करवाइए नहीं, ये करने का समा है ही बड़ा घनघोर युद्ध का समय है। घरने से परमात्मा मिल नहीं सकता। ये आपको मैं अन्धकार और प्रकाश का घनघोर युद्ध का समय क्या बता रही हूँ आप वशिष्ठ पढ़ें, नहीं तो चल रहा है। आपको पता नहीं क्योंकि आप तो आदिशंकराचार्य को पढ़ें जो कि historical चीज मुझे ही देख रहें हैं। अपने से परे आप किसी को है। उनको पढ़े, उन्होंने भी यही कहा है कि आप देख नहीं पा रहे लेकिन जो लोग Realized हैं वो जानते हैं कि कैसा कैसा जंग बाँधी गया बोझे में डाल लेते हैं। लोगों ने मुझसे ऐसा भी कहा कि माताजी आप तो पढ़ते हैं जिन्हें धर्म के बारे में कुछ मालूम चढ़ाना है। इसमें किससे मैं विरोध कर रही हूँ? बता रही हैँ कि आप गलत सीढ़ी पर चढ़ गए हैं। अन्तर है वो इतना ही है वो कहते सभी उतर आइए। मैं तो बड़े बड़े परमात्मा को पाने के लिए कुछ कर नहीं सकते। है। लेकिन अन्तर है, उनमें और मुझमें जरा सा, थोड़ा Negative और Positive forces दोनों अपना जोर सा फर्क है। इतना ही अन्तर है कि उन्होंनें कहा बॉँध रहे हैं। Sympathetic और para था कि परमात्मा को पाने के अधिकारी बहुत ही sympathetic का पूरा जोर है Sympathetic कम है, इसलिए ठीक है कि कुछ भक्ति में रहें और Para Sympathetic को छूकर चली जा रही है अपने ऊपर में योग लगाकर अपने मन को और Sympathetic कितनी भी छू लं, गर Para कुछ अनुशासित करें लेकिन उन्होंनें नहीं कहा था कि Syrmpathetic अनन्त से एकाकार हो जाएगी तो अनुशासित हों, फिर चाहे वो किसी भी तरह का उसमें भरता ही रहेगा । कितना भी आप Petrol हो और वैसा भी मन जो विषयों के पीछे दौड़ता है खर्चा करें, गर पेट्रोल पम्प ही लगा हुआ है तो फिर और अपने को जिसे indulgence कहते हैं, दोनों क्या डरने का? ये सारे Sympathetic का प्रश्न है, ही मन इस कार्य के लिए व्यर्थ हैं। ऐसा सुन्दर मन Sympathetic की जी Active Consciousness जो छोटे बच्चों जैसा निष्पाप हो, वो ही इस की side है. जहाँ से आप सारा काम करते हैं, 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page7.txt Original Transcript : Hindi Energy इस्तेमाल करते हैं, वो गर अति इस्तेमाल हमें आगे बढ़ना चाहिए। उस पर उनका चित्त. मेरा ही तो कैसर जैसा रोग हो जाता है और जिस लड़का जो है वो ठीक हो जाए, मेरे बच्चे जो हैं तरफ में Super Ego होता है वो ज्यादा इस्तेमाल हो तो पागलपन आ जाता है। हम किसी को ठीक ठीक हो जाएं, मेरा पति जो है वो ठीक हो जाए! फिर कोई कहेगा, वो मेरे पैसे का मामला है ठीक ठाक नहीं करते हैं। यह भी कहना कि हम हो जाए! चिंत्त कहाँ है? अथ आप Realized हो बीमारियों ठीक करते हैं एक तरह से गलत ही बात गए तो भी चित्त वहीं है जिसे आप छोड़कर आए हैं! है क्योंकि वो तो Para Sympathetic Nervous जिसने चैतन्य पर चित्त रखी है वो बहुत ऊँचा उठ System जो कि इन दोनों ही System को ठण्डा गया है। आपके बीच में भी ऐसे लोग बैठे है जो हुए कर देती है अपने आप ही मनुष्य जो है चो ठीक हो पढ़े लिखे हैं, देवता स्वरूप है, यह लोग वन्दनीय है, जाता है गर कोई पागलपन होगा तो वो भी ठीक यही देवता है इन्हीं को देवता कहना चाहिए हो जाएगा और कोई गर आपके अन्दर में Over जिनका Rebirth हुआ है। बेकार की बाते करने Activity से कैंसर जैसा रोग होगा तो वो भी ठीक वाले लोगों से झगड़ा करने की किसी को भी कोई हो जाएगा। कैसर का इलाज सिर्फ सहज योग है जरूरत नहीं। जिनको आना हो आए,नहीं आना है और कोई उसका इलाज संसार में नहीं है यह बात नहीं आए। उनसे झगड़ा करने की इस पर वाद सिद्ध हो जाएयी हम जानते हैं थोड़़े से ही दिन विवाद करने का समय है ही नहीं क्योंकि वो लोग में यह बात सिद्ध हो जाएगी और हमने बहुतों का बाद-विवाद ही करते रहेंगे । इलाज भी जो किया है कैसर का वो भी लोग यहाँ भी कहा था न कि निम्न कोटि के लोग. उनको तो बैठे हुए हैं, वो भी बत्ता सकते हैं । तो भी, एक बात पहले और शुरू से ही कह अनुशासित करें और किसी तरह से अच्छे से रहें, रहीं हूँ कि चित्त हमारा कहाँ है? चित्त क्या उस चोरी चकारी से बचे। एक अच्छे सामाजिक घटक कैंसर पे है जो इस शरीर को जर्जर किये हुए है बन कर रहें । किन्तु परम को पाने वाले लोग, परम जो कि जड़ है? हमारा चित्त गर चैतन्य पर है तो की ओर दृष्टि रखने वाले लोग, ऐसी चीजों से न्य की बात सोचनी चाहिए। जब तक हम सन्तुष्ट होने वाले नहीं। जब तक परम आपने पाया अपना चित्त चैतन्य की ओर नहीं रखेंगे तो जड भी नहीं आप को मेरे ऊपर भी बिल्कुल विश्वास नहीं हमें सताएगा सारा काम चैतन्य का है जडता का करना चाहिए। इस ढकोसलेबाजी की बिल्कुल कोई काम ही नहीं है। हमको इतनी आदत जड़ता जरूरत नहीं । किसी भी चीज आपको कोई भी की हो गई है कि मनु छोटी जड़ बातों से बताए आप कुछ विश्वास न. करके पहले अपने चिपक जाता है. छोटी छाटी जड़ बातों से। जैसे मैं अन्दर पा लीजिए तभी आप मेरे ऊपर भी उपकार आपसे कहूँ कि एक स्त्री हमारे पास आती थ्री, करेगे यहाँ कोई बाजार खोलना नहीं है, पैसा उनको Realization हो गया और वो काफी अच्छे कमाना नहीं है, माल कमाना नहीं है। सिर्फ मुझे से देने वरगैरा लग गई। लेकिन Reallzation का यहाँ मनुष्य का परिवर्तन करने का है। इस जन्ग आदिशंकराचार्य ने ठीक है वो अपना किसी तरह से अपने मन को मतलब भी यह तो नहीं कि आप व्यस्त हो गए, में नही हुआ तो अगले जन्म में देख लेंगे। तो, हमें आपका पुनर्जन्म हो गया आप निरक्षर हो गए। अब अनन्त में ही रहने की आदत सी है। लेकिन अब भी 8. 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page8.txt Original Transcript : Hindi यह सोच लेना चाहिए कि जो कोई मर चुके हैं वो के साथ कैसा भी खिलवाड हो गया हो। खिलवाड मर चुके चित्त को अपनी ओर रखें। शायद उनमे से आप कृण्डलिनी में खराबी आ गई हो, उसपर लोग मुझे एक हों जिन्होंने कुछ कुछ लिख दिया था, हो कहते हैं कि आप विरोध कर रहें हैं! भई पागलपन सकता है कि आप ही वो बड़े भारी लोग हों की बात है! एक माँ है जो बच्चे की कोई चीज जिन्होंने बहुत कुछ लिखा हो और आज भी यहाँ बिगड़ी देखती है तो उससे वो बताती है तो किसी जन्म लेकर आए हैं, अपना दावा लेने आए हैं। जो का विरोध नहीं करती है। तुम्हारी अबोधिता में, हो चुका सो बीत गया। सहजयोग में जो साधक होता है उसे कुछ भी उसको हम बैठे हुए हैं उसे ठीक करने के लिए । नहीं करना चाहिए। जो डूब रहा है पानी में वो कुछ लेकिन पहले ही इस तरह की बात सोच लेना ये न करे तो अच्छा है लेकिन बाकी के तैराक लोग कौन सी आर्तता है? यह कौन सी माँ है? उसे बचाते हैं और उसे उठाते हैं यही साधारण हैं। उनकी बातें करके मत घबराइये। बहुत हो चुके हैं, पर मैं कहती हैं कि किसी की भी सादगी में, गर तुम्हारा कुछ बिगाड़ हो जाए, तो गुरु का आज, गुरु पूर्णिमा का आज दिवस है तरह से सहजयोग आप समझ लें। जो लोग अपने और सहजयोग का पूर्णवर्णन विषद रूप से करना में उतर गए हैं, जो लोग पार हो गए हैं, जो अपने इतने छोटे समय में सम्भव नहीं। मेरा आज विचार अन्दर एकाकार अपनी शक्तियों से हो गए हैं, वही था कि काफी विषय पर मैं कह सकूंगी लेकिन मैं सब कुछ करेंगे। आप शान्त बैठिएगा जो अभी तक जानती हैं कि यह विषय अत्यन्त विषद सागर की पार नहीं हुए हैं। आपके सूत्र में आकर के वो आप तरह, और अनेक ध्यान की क्लास में मैंनें लोगों को को प्यार देंगे, आपके सूत्र में आकर वो आपके बताया है। इतना ही नहीं जो लोग Realized है. चकों को ठीक करेंगे क्योंकि आप अभी अपने चक्ों उस स्तर पर आ गए हैं कि इस बात को समझें को जानते ही नहीं। जब आप पार हो जाएंगे तब क्योंकि उनके हाथ से वो प्रवाह निकल रहा है, वो आप मेरी बात जानिएगा कि हा यहाँ चक्र है, यह आनन्द लहरियाँ बह रही हैं, वो प्रेम की लहरियाँ चक्र घूम रहा है, वो चक चल रहा है, उनका ऐसा बह रही हैं जिससे वो समझ सकते हैं कि Collective चक्र है। तभी आपको Collective Conscious Consciousness क्या है, सामूहेक चेतना क्या जिसे कहते हैं 'सामूहिक चेतना', उसका आभास है। इसको भी समझना चाहिए कि ये कौन सी चीज होगा पहले ही से नहीं नहीं करने वाले लोगों का है। अभी बहुत से लोग आपमें ऐसे भी होंगे जो मेरी यह स्थान नहीं है और न ही उनके लिये यहाँ पर ओर हाथ करके बैठे तो आपके अन्दर ऐसा लगेगा कोई व्यवस्था की जा सकती है। ऐसे लोग जो कि कि जैसे हाथ थरथरा रहें हैं, कंपकंपा रहे हैं । आप है, चाहे वो कितने भी Condition में हों आपको ऐसा लगेगा और मुझसे लोग कहेंगे ये लेकिन जो सच्चाई चाहते हैं और जो चाहते हैं कि Vibrations आ रहे हैं। ये Vibrations नहीं हैं वो हमारे अन्दर परिवर्तन हो जाए, वो सिर आँखो पर तो आप हमारे विरोध में हैं, आपमें कोई चीज हमारा हमारे। और मुझे पूर्ण विश्वास है के इस जन्म में विरोध कर रही है पूरा समय। ये जो हम प्यार ही उनको मिलेगा चाहे उनकी कैसी भी आपको दे रहे हैं उसके विरोध में थरथरा रहे हैं। ये Conditioning हो गई हो, चाहे उनकी कुण्डलिनी आप हमारे विरोध में खड़े हैं इस लिए आप थरथरा 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page9.txt Original Transcript : Hindi रहे हैं, वो Vibration नहीं हैं। और Vibration तो यह कहेंगे कि इतनी जल्दी कोई पार होता है? नही तभी हम मानते हैं जिस वक्त आपके सहस्रार का होते, बहुत से नहीं होते, चार चार साल से लोग चलना रुक जाए कबीर दास जी ने कहा है कि हमारे पास आ रहे हैं, बहुत बड़े-बड़े लोग हैं, कोई शिखर पर अनहद् बाजोरे। शिखर पर अनहद् की तो बहुत भारी Minister Saheb हैं, कोई गवर्नर आवाज आती है, माने हृदय में जो स्पन्दन है वैसी साहब हैं, कोई कुछ हैं ! नहीं होते तो नहीं होते, आवाज आने लगती है। ये तो हुई जबतक टूटा हमें इससे क्या करना? हमें किसी से पैसा तो लेना नहीं, जब टूटने पर सारी ही आवाज टूटकरके, है नहीं कि आप हमें दो हजार दे दीजिए, हम पार सारी ही आवाज टूटकरके आप परमात्मा से एकाकार कर दे, Certificate दे देंगे! जो नहीं हुआ सो नहीं हो जाते हैं तब न कोई आवाज आती है, न कोई हुआ, जो हुआ सो हुआ। अभी हम अमेरिका गए थे चीज दिखाई देती है, न कोई चीज दृश्यमान होती वहाँ पर एक साहब बहुत बड़े राजा हैं वो कहीं के। है। बहुत से लोग कहते हैं कि हमें दिव्यदृष्टि है, वहाँ मिले, वो हमारे साथ थे वो हमसे कहते हैं ये हमें दिव्य फैलाना है। ये सब किसलिए? दृष्टि से क्या होता है? दृष्टि से क्या मिलने वाला है? दृष्टि हैं हमको नहीं करते हैं, हमनें क्या किया? हमनें से ही गर सब कुछ मिलने वाला होता तो फिर कहा बेटे हम तुमसे कुछ कहेंगे नहीं क्योंकि तुम्हें खोज काहे की? इस दृष्टि से मिलने वाला वो नहीं दुख होगा तुम धर्म पर इतना लेक्चर देते हो तुम और इस कान से सुनने वाला वो नहीं है किन्तु कभी धर्म में उतरे हो क्या? यह रात दिन जो तुम इसको जानना है अन्दर से। जिसने उसे अन्दर से अपनी जान को मारे ले रहे हो वो किसके मारे ? क्या श्रीमाताजी जो आता है आप उसको पार करते जाना है वही उसे समझ सकता है। दृष्टि से तो तुम जरा इसे छोड़ो, थोड़ा सा परमात्मा पर छोड़ो। बहुतों को दिखाई देते हैं, बड़े, बड़े करिश्में दिखाई चार दिन बीत गए उसने कहा भई आज तो हम देते हैं, बड़े बड़े लोगों को चित्र दिखाई देते हैं! मुझे मान गए. हम lndia में गए तो सब लोगों ने हम से बहुत से लोग आकर बताते हैं कि उसको चमत्कार हैं। मैं कहती हैूँ बेटे उससे परे रहो। यह सब परलोक, सब मरी हुई चीजें हैं। इससे परे परमात्मा कहा कि तुम तो भईया एकदम पार हो गए और तुम हमारा कार्य करो। तुम हम को रुपया दो और ये करो ।सबने हमें Certificate दिया! मैने कहा मेरे एक अनुभव है। ये एक अनुभव है। इससे परे पास नहीं चलता बेटे क्या करूं? वो तो जो होएगा परमात्मा है, इसे छोड़िए। यह सब कुछ छोड़कर सो होएगा। इसमें किसी की चापलूसी, किसी की निराकार में जब आप एकाकार परमात्मा से होंगे Recommedation कुछ नहीं चाहिए। ये इतना तब इन सब चीज़ों का अर्थ बनेगा जो साकार बनी Ultra modren है कि इस पर किसी का असर बैठी है। नहीं चलता। जो होगा सो होगा, जो नहीं होगा सो इस आनन्द लहरी से लोगों ने बहुतों को नहीं होगा अब जो नहीं हुए वो नाराज हो जाते हैं ठीक भी किया, बीमारियाँ ठीक हुईं। लेकिन जो और मेरे खिलाफ जाकर कुछ कुछ बोलने लग जाते सबसे बड़ी जो चीज हुई है, जिसका मुझे बहुत हैं। कुछ बोलें, अब हम क्या करें जो नहीं हो रहे आनन्द है, कि दस आदमी पार हो गए। सबने तो! हम तो चाहते हैं कि सबको हो, रात दिन मिलकर सामूहिक किया, पार हो गए। अब आप मेहनत कर रहे हैं कि आपको हो जाए। लेकिन 10 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page10.txt Original Transcript : Hindi आप नहीं होते हो तो हम क्या करें? आपकी कहते हैं हम लोग झूठे नहीं। इसको भगवान का रुकावट है। ये भी सोचना चाहिए कि किसी को नाम नहीं देते हैं। उन लोगों का ऐसा है कि उनको कहते है. किसी को नहीं कहते और सब लोग आप चिट्ठी लिख दीजिए तो बो आपको लिखकर कहते हैं कि हाँ हो गया, जितने भी खड़े हैं कहते हैं हो हो गया तो हो और गया सब लोग कहते आपके पास आकर कुछ कर जाएगा, आप आराम भेजते हैं कि दस बजे उतने Time पर कोई आदमी हैं कि इसका सहस्रार चल रहा है, मैंने कहा नहीं से देखते रहना। और बराबर उसी वक्त आपको सब का ही चलं रहा है। इसमें से कोई तो सत्य कुछ लगता है कि कुछ हुआ अपने अन्दर में और होगा। बीमारी को ठीक करना सहज योग का आप ठीक भी हो गए कार्य नहीं। ये जान लेना चाहिए क्योंकि बहुत से है लेकिन तो भी ठीक करने से केवल शरीर ही तो लोग यें कहते हैं उन्होंने भी ठीक किया, उन्होंने ठीक किया है, उससे परम तत्व तो किसी ने नहीं ठीक किया। किया होगा, कैसे किया होगा? पता पाया! परम तो मिला नहीं, ये शरीर तो यहीं नहीं! सहजयोग से सिर्फ कुण्डलिनी की जाग्रति छूट जाएगा और फिर वहाँ जाकर फिर यहीं आना और परमात्मा को पाने की ही बात है और कोई है। और जिन पर बो ऐसे प्रयोग कर रहे हैं वो ये नहीं है और ये कार्य जो है इसका आप जड से भी नहीं जानते, वो भी अबोध हैं, वो भी उनका सम्बन्ध नहीं जोड़िए कभी भी इसका जड़ से बचकानापन है! सम्बन्ध जोड़ करके इसको जड़ में नहीं आप जान सकते। क्योंकि बीमारियों तो हज़ार तरह से ठीक इस्तेमाल कर रहे हैं वही कल उलट कर हमारे हो सकती हैं। आपने सुना होगा डॉक्टर लैंग एक आदमी था, लन्दन में बहुत बड़ा डॉक्टर वो मर जानते थे, नहीं तो अपनी लड़की के अन्दर क्यों गया अकरमात वो मर गया उसकी इच्छाएं अतृप्त नहीं घुसे? वो एक Soldier के अन्दर जाकर क्यों थी। तो एक Soldier था वियतनाम में उसके घुसे? और Spint का देह जो होता है उस पर ये Superego में वो घुस गया । उसको कहने लगे जड़ नहीं होता, इसलिए बहुत कुछ देख सकता है तुम London चलो मेरी लड़की के घर। वहाँ पहुँचे बनिस्वत हमारे। जिसको कि आप Para तो उन्होंने उनसे कहा उनको कहो कि हैं तुम्हारे अन्दर | तो लड़के ने कहा इसका क्या आशीर्वाद कहते हैं जो कूदना होता है जो चीखना विश्वास? तो उन्होंने उसको सब बताया, जो कुछ भी उनके बीच में गुप्तवार्ता Secret हुए थे चो सब होता है सारा Spirit का काम है। उसमें कुछ अच्छे बताए। उसको विश्वास हो गया । उसने कहा तुम Spirit भी होते हैं कुछ Spirit बहुत ही... जैसे हम फिर से मेरा Organisation शुरु करो, . मदद करुंगा क्योंकि यहाँ परलोक में बहुत से महादुष्ट भी हैं। आप उन्हें आज देख नहीं रहे, हो डॉक्टर हैं जो Menifest करना चाहते हैं, जो सका तो बाद में आपको मैं दिखा भी दूंगी, जैसे अवरतरित होना चाहते International Organisation है. सच्चे लोग हैं. समय आजाय तो मैं आपको ये भी दिखा दूंगी। से लोग ढीक भी ए। बहुत हुए वो जानते नहीं है कि जिस Spirit को बो आज त ऊपर आएगे मैं सोचती हैँ Dr Lang थोड़ा सा मैं आया Psychology कहते हैं, जिसे कि आप आत्मा का होता है चिल्लाना होता है और सम्सोहन करना मैं तुम्हारी हैं वैसे Spirit भी हैं । इसमें राक्षस भी होतं हैं, हैं। उनका बडा भारी आज में आपको कुण्डलिनी दिखा रही हूँ। ऐसा , H a 11 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page11.txt Original Transcript : Hindi लेकिन है। उनका वास्तव्य आप देख सकते हैं,उनका कहना चाहिए परलोक। उससे भी उत्थान हो रहे असर आप देख सकते हैं, उनका असर आप देख हैं,वही उत्थान हमारे सहजयोग में सबसे ज्यादा हो सकते है और हर एक धर्म में उनके बारे में लिखा रहे हैं । और जिस आदमी पर ऐसा कुछ हो गया हो है। हिन्दुओं में सुर - आसुरों की बात लिखी है जो उसके लिए बहुत कठिन हो जाता है कि वो है सो है। जब आप positive की बात करेंगे तो सहजयोग में परमात्मा को पाए । इसमें दोष हमारा Ngative [आपको दिखाना ही पड़ेगा कि ये positive नहीं है। सच बात है इसमें हमारा कोई भी दोष है और ये Negative है जो धर्म और अधर्म की नहीं । दोष न आपका है न हमारा है । थोड़ा आपके बात नहीं कर सकता दो हवाई बात है सिर्फ धर्म कर्मों का जरूर होगा नहीं तो आप ऐसी जगह क्यों की बात करने से कैसे होगा?धर्म भी हैं और अधर्म गए जहाँ पर जाकर के आप पर ऐसा दोष लग भी है। उसकी पूरी सारी रेखा है, जो धर्म है वो गया? पूरी सतर्कता में स्वयं ही अपने आप होने अधर्म नहीं हो सकता, जो अधर्म है वो धर्म नहीं हो वाला जीवन का विकास यही सहजयोग है। भूत-प्रेत Spirit, सन्त भी, इनसे आप परम नहीं पा सकते, वो इसका Confussion कलियुग की वजह मरे हुए लोग हैं परम सिर्फ जिन्दा में ही आ से कर दिया, लेकिन ऐसी बात नहीं है, जो Negative सकता है. मरे हुए में गर जाता है तो क्यों वो यहाँ 1. सकता। हैं Negative है. जो positive है वो positive है आ रहे हैं हमारे ऊपर में वहाँ क्यों नहीं बैठते? जो Negative चीज है उसको समझ लेना चाहिए। जिन्दा होना चाहिए। आदमी जब तक जिन्दा नहीं Negative का मतलब है मरी हुई, Dead होगा, सतर्क नहीं होगा, उसकी चेतना जब तक sympathetic में बैठी हुई। वो है, और उस पूरी तरह से जागृत नहीं होगी तब तक उसके Nसgative का असर बहुत ज्यादा उस जगह जब अन्दर सहजयोग नहीं उतर सकता। पूर्ण जागृत होता है जहाँ पर मनुष्य जड़ होता है जैसे बम्बई अवस्था में जो चीज आप पाते हैं वो ही परम है। शहर में हम लोग बहुत जड़ हो गए हैं रत दिन समाधि में लोग सोचते हैं कि ऑँखें ऊपर हो गई पैसों की ठनकार, Election के झण्डे! इन सब गुरु हो गए हम। दो-दो घण्टे बैठे हुए है! यह चीजों में इतना चित्त उलझा रहता है। रात दिन सहजयोग से नहीं होने वाला। ये सब आपका यह पढ़ पढ़ कर और सुन सुनकर मनुष्य का चित्त Subconscious है जिसे कि मैं कहती है मृतलोक, ही नहीं जाता है वहाँ पर। Enquiry ही नहीं हैं, जिसमें आप उतर रहे हैं। इसका कोई भी आपको खोज ही नहीं है! अरे हम क्यों जी रहे है! क्या चिरस्थायी फायदा नहीं है। जिस मनुष्य को परम यही सब करने के लिए? उनके गुण्डे ने वहाँ पमाना है उसको सोच लेना है कि जो मैं सतर्कता में, मारा,उन्होंने जाकर उनकी बुराई करी, उन्होंने पूरी स्वतंत्रता में पाऊँगा वही मैं धाऊँगा। पूरी जाके उनको ऐसा किया! क्या यही सब करने के स्वतंत्रता आपको यहाँ तक किसी भी तरह का लिए हम संसार में आए हैं? मनुष्य का चयन गलत भक्ति भाव मेरे प्रति न हो, बिल्कुल नहीं होना है। इस जड तत्व से बहुत बच कर रहिए लेकिन चाहिए। जैसे एक साधारण सौम्य स्त्री होती है वैसे ये जड़ तत्व तो आपका अपना घिराव है। हैं. इसके ही मैं हूँ। धर गृहस्थी की एक साधारण स्त्री अलावा भी collective subconscious है। जिसे ऐसा ही समझ लीजिए । कुछ विशेष हैं ये सोचना 12 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page12.txt Original Transcript : Hindi ही नहीं । ऐसा ही सोचकर आइए। ये स्वतंत्रता भी जिम्मेदारी भी इतनी बढ़ जाती है। उसका सारा होनी चाहिए। तभी आप पाएंगे चाहे आप दस हों, व्यक्तित्व ही दूसरा हो जाता है । लेकिन आदिकाल चाहे आप एक हों, हमारे लिए काफी है। इसके से ही लोग कहते आए हैं कि माँ से बढ़कर गुरु number से नहीं होता है हालांकि number भी, कोई नहीं है। गुरु उसी को मानिए जो आपसे बड़ा बढ़ाना होगा Number जरूर बढ़ाना होगा इसमें हो, बड़ा हो, जो आपसे बड़ा परमात्मा हो। कोई शंका नहीं । कार्य जोरों में गर हो जाए तो रामदासस्वामी ने गुरु के बारे में ऐसा कहा था कि हो सकता है। हालांकि परम उपर से बहुत अलग गुरु उसे मानिए जो स्वयं तो पारस है ही दूसरों को है। एक नव निर्माण के लिए एक नई चेतना के छूते ही सोना नहीं बना देता उसे, पर पारस बना लिए, एक नए तरह के मानव की इसमें व्यवस्था की देता है। जैसा खुद है वैसा ही दूसरों को बना देता हुई है। इस Para Sympathetic में एक प्रेम है है और इसीलिए ये माँ स्वरूप चीज है माँ बच्चों एक ज्ञान है, एक सौन्दर्य शैली। मनुष्य की रचना में होती है बच्चों के गौरव में गौरव मानती है। होनी ही पड़ेगी और होके ही रहेगी। आप लोगों ने इतनी देर तक मेरा भाषण सुना इच्छा रही कि ये प्रेम और ये ज्ञान एक माँ के अन्दर है, गुरु पूर्णिमा के दिन मुझे यही कहने का है कि से आपको मिले अभी हम लोग ध्यान में जाएंगे इस जन्म में मैं गुरु हो गई, और तो किसी जन्म में इसके बाद में, आप लोग आतीतता से इसमें बैठे। ये कार्य नहीं किया था पहली मरतबा गुरु का अपने विचार, अपने विरोध, इनको छोड़ दें थोड़ी देर कार्य करना पड़ा। शायद वो भी माँ को ही गुरु के लिए । इसलिए कि आपको अपना मंगल और होना पड़ता है। ये कलियुग का मामला है इसलिए कल्याण करना है। अपने साथ अच्छाई है, अपने नितांत परमात्मा की जो भी शक्ति है ये किसी माँ साथ बुराई है, किसी भी एक चीज को पकड़े बैठे के हृदय से बहे, उसी की करुणा और उसी के प्रेम हुए हो तो उसे छोड़ दीजिए थोड़ी देर के लिए । हमें में कुण्डलिनी को संजोया जाए और उस शिखर आपसे कुछ लेना देना नहीं और आपकी स्वतंत्रता तक पहुँचा दिया जाए जहाँ पर कि वो अपने दोलन हमें छीननी नहीं । किसी भी तरह, किसी भी कीमत में अपने आनन्द में, अपने स्थान में विराजित हो! पर मैं आपकी स्वतंत्रता छीनती नहीं । जैसे लोग ये आज हमारे ही भाग्य में है, इसीलिए इस जन्म पागल जैसे किसी के पीछे दौड़ते हैं, हजारों रुपया में ये गुरु का स्थान स्वीकृत किया है। माँ गुरु बन उन्हें दे देते हैं, चीजें दे देते हैं। अरे चीजें लेते जाए, ऐसा कहीं होना बड़ा कठिन है क्योंकि माँ किसलिए हो? गुरु वो जो आपसे कुछ नहीं लेता । अत्यन्त कोमल होती है। गुरु तो मार भी देगा, पीट गुरु को आप क्या देंगे? आप मुझे कुछ नहीं दे भी देगा, डॉट भी देगा, लेकिन माँ एक भी कठिन सकते, आप मुझे Vibration भी नहीं दे सकते, आप शब्द बोलते वक्त उसके हृदय में कचोटती है, को आश्चर्य होगा कि आप मुझे Vibrations भी तकलीफ होती है- बहुत ही, और जब वो देखती नहीं दे सकते! है कि मेरे बच्चे कितनी साधना से आए हुए हैं और इनको किस तरह से इनको संजोकर के, संभाल थी, वो कहने लगी माताजी मैं आपको Vibration करके, प्यार से उस किनारे ले जाना है।तब उसकी दूँ?' मैने कहा देखें दो तो सही। जब वो Vibration 1. इसलिए इस जन्म में शायद परमात्मा की यही एक दिन मेरे पैर में चोट लगी तो एक Doctor 13 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page13.txt Original Transcript : Hindi ० ु० ० ज देने लगी तो चोट की जगह से इतनी तेज उनको Vibration आई कि वो खुद ही ध्यान में चली गई। आपको बहुत आशीर्वाद है और जितने Realized कहने लगी इस जगह से Vibrations आ रहे हैं। लोग हैं उनको विशेष रूप से, और उनसे मेरी और मेरी जो चोट थी वो एकदम से हल्की होने विनती है कि जैसे अपने पाया है दूसरों को देने का लगी। गुरु वो जो आपसे कुछ भी न ले सके, जो पूरा प्रयत्न करें। शिखर पर बैठा हुआ है वो नीचे की ओर बहेगा, उसकी ओर कोई नहीं, कुछ नहीं बहेगा सब है वो लोग आपसे नाराज हो जाएं, गुस्से हो जाएं. अरम मांगिएगा। आज की गुरु पूर्णिमा के दिन मेरा उनको भी समझाने का प्रयत्न करें। हो सकता मारेंगे, पीटेंगे। ये कुछ भी नहीं हैं, इससे कहीं समझ की बात है। गर मैं किसी से कहती हैँ बेटे मुझे मत दो अधिक हमने सहा है इसलिए कुछ भी नहीं । क्योंकि ये सब ढकोसला है, आप मुझे कुछ भी नहीं वाद विवाद करेंगे, आपको नहीं मानेगे, कोई हर्ज दे सकते। उल्टे आप कुछ मॉँगते हैं मुझसे तो सारा नहीं। छोड़ दीजिए उन्हें. जो आपको मानते हैं का सारा व्यक्तित्व जो है वो खौल उठता है, अन्दर से सारी की सारी प्रभावशाली शक्तियों दौड़ने लग आपको देना है, आप दे सकते हैं, सब मेरे बच्चे । जाती हैं कि किस तरह से प्रेम से मैं इस बच्चे को मेरा प्यार संसार में सब जगह पहुँचे और घर घर सम्हालू। जरा सा कोई कुछ मांग ही ले ! परम, दीप जलें। उन्हीं पर यह अनुग्रह करें यहाँ तो केवल देना है. बहुत बहुत आप सबका धन्यवाद 14 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page14.txt MARATHI TRANSLATION (Hindi Talk) सारांश (Excerpt) Scanned from Marathi Chaitanya Lahari गुरू पूजा प. पू. श्रीमातार्जीचे भाषण, मुंबई १९७२ टिसी सहजयोगाचा एक अभिनव असा आविष्कार होत आहे. जे सत्य आहे जे आहेच' त्याचा आविष्कार कसा होतो हे समजून घ्या. कोलंबस हिंदुस्थान शोधायला बाहेर पडला. तेव्हाही हिंदुस्थान होताच; नसला तर शोध कशाचा घ्यायचा? तसेच सहजयोग होताच, पण त्याचा अनुभव आता तुम्हाला घ्यायचा आहे, काही जणांना मिळालाही आहे. सहजयोग हा त्या परमतत्त्वाकडे जाण्याचा एक मार्ग आहे; एक व्यवस्था आहे; एक प्रणाली आहे; मानवजातीला उन्नत स्थितीवर येण्यासाठी जीवनाला नवीन दिशा देण्यासाठी ही एक व्यवस्था आहे. ज्यामध्ये मानव या विश्वव्यापी चैतन्याची ओळख करून घेऊ शकेल आणि ते परमचैतन्य आत्मसात करू शकेल. याच ली परमतत्त्वाकडून सारी सृष्टी चालवली जात आहे वे त्याच्यातूनच मानव जन्माला आला आहे. फार प्राचीन कालापासून याचा शोध चालत आला आहे. त्याच्याबद्दल बरेच काही लिहिले गेले आहे; प्रेम, पैसा, सत्ता अशा विविध क्षेत्रांमध्ये मानवाचा हा शोध चलत आला आहे. तरीही मानव अजून स्वत:ला नीट ओळखू शकला नाही. तसे पाहिले तर हा एक आनंदाचा शोध आहे. पण मग कुणी संपत्ती मिळाली की आनंद मिळेल असे समजून पैशाच्या मागे लागले, पण त्याचबरोबर ज्यांनी अमाप संपत्ती मिळवली त्यांनाही दुःखापासून सुटका मिळाली नाही; काही लोकांनी तर या निराशेपोटी आत्महत्या करून घेतली. असे करता करता कुठेच आनंद मिळाला नाही म्हणून लोक धर्माच्या मागे लागले. धर्माच्या पाठीमागे लागल्यावरही त्यांचे चित्त बाहेरच्या गोष्टींमधेच अडकून राहिले आणि त्यांना खरी 'स्व' (स्वत:ची) ओळख झाली नाही. हे असे का होते? अपरिचीत असतो आणि त्यामुळे त्या 'स्व चे वैभव, कारण माणूस खर्या स्व बद्दल ऐश्वर्य, महानता, प्रेम हे त्याच्या लक्षातच येत नाही. त्या अवर्णनीय आनंदाला तो पारखाच राहतो. मानव स्वत:च आनंदस्वरूप आहे व तोच परमानंद आहे. अर्थात हे सुद्धा बहुतेक वेळा शाब्दिकच राहते. बोलाची कढी, बोलाचाच भात म्हणतात त्याप्रमाणे हे होऊन जाते. हे असे अनादि कालापासून चालत आले आहे. याला कारण मानवाचा आत्मसाक्षात्कार हा तुमचा पुनर्जन्म आहे हे लक्षात न घेता आत्मसाक्षात्कारानंतरही तुमचे चित्त व मागण्या तुमच्याच कुटुंबाच्या समस्यांमध्ये पैशामध्ये विचार सदैव 'मना मधून होत असतो व त्या मनाच्या तो पलीकडे आपल्याला जायला पाहिजे. आता माझे भाषणही नुसते शब्द समजून राहू नका. त्यातून तुम्हाला परमात्मा समजणार नाही. म्हणून जे आपल्याला शोधायचे आहे व मिळवायचे आहे तेथपर्यंत आपण मनाने पोहचू शकणार नाही. तीच गोष्ट बुद्धीची. म्हणून जे परमतत्त्व आपल्याला जाणायचे आहे त्याच्यासाठी मन-बुद्धीच्या पार झाले पाहिजे. कारण मन-बुद्धी चालवणारी तीच शक्ती आहे. ही शक्ती जाणण्यासाठी कितीही उपदेश ऐका, वाचन करा वा प्रयत्न अंडकून राहिले तर काय फायदा? तुमचे चित्त सतत चैतन्याबरोबर राहिले पाहिजे. करा, तुम्हाला ती जाणता येणार नाही. वा त्याचा अनुभव येणार नाही. नानक, कबीरासारखे संत याच शक्तीबद्दल बोलले. हा एक तुमच्या आतमधला अनुभव आहे. म्हणून वर म्हटल्याप्रमाणे कोलंबसला हिंदुस्थान सापडला नाही. याचा अर्थ हिंदुस्थान नव्हता असा नाही किंवा त्याच्याकडे काही कमी होते असा ही नाही. त्याच्यानंतर ज्यांना 15 19720601_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page15.txt Marathi Translation (Hindi Talk) शोध लागला त्यांनाही हिंदुस्थानात काही कमी होते है परमात्म्याची महाप्रेमशक्तीच करू शकते; जोपर्यंत ही प्रेमशक्ती दाखवायचे नव्हते. तुम्ही अलग-अलग होऊन याचा विचार मानवामध्ये उरतणार नाही तोपर्यंत कुंडलिनी उठणार नाही. विशेषतः केलात तर मी काय म्हणते हे तुमच्या लक्षात येणार नाही. मानवाचा नाभी व अनाहत चक्रांमधील पोकळीमधून हे कार्य झाल्याशिवाय हा शोध जन्म जन्मांतरापासून चालत आला आहे. वास्तविक कुंडलिनी उठणार नाही. त्याच्या आड येणारे हे अहंकार व जन्म-मृत्यू हे एक प्रकारचे जाणे-येणे आहे, हिंदू-मुस्लिम वगैरे प्रतिअहंकार तुम्हाला परमात्म्यापासून अर्थात स्व पासून दूर ठेवतात. हे सर्व मी कुणाच्या विरोधात बोलत आहे असे समजू नका. त्याचा सारखे वाद फक्त राजकारण म्हणून चालतात. सहजयोग हे काही राजकारण नाही. पूर्वजन्मी हिंदू हिंदूच होते किंवा मुसलमान मुसलमानच होते असेही नाही. म्हणून हा घेता आत्मसाक्षात्कारानंतरही तुमचे चित्त व मागण्या तुमच्याच शोध त्या स्तरावरच झाला पाहिजे. म्हणजे खरा अनुभव येईल. ही कुटुंबाच्या समस्यांमध्ये पैशामध्ये अडकून राहिले तर काय फायदा? सूक्ष्म स्तरावर घडणारी घटना आहे हे नीट लक्षात घ्या. जे सूक्ष्म तुमचे चित्त सतत चैतन्याबरोबर राहिले पाहिजे. असे लोक आहे, तरल आहे त्याचा जडाशी काही संबंध नसतो. परमात्मा देवतास्वरूप वंदनीय आहेत; फालतू गोष्टी, वादविवाद करण्यात खरं पाहिल तर काहीच देत नाही; तुम्हाला घर, जमीन-जुमला, त्यांना रस नसतो; इथे नाव-पैसा-प्रसिद्धी अशा गोष्टी मिळवायच कुटुंब असल्या गोष्टीही परमात्मा देत नाही; त्यामध्ये परमात्म्याला काम नाही. मनाचे परिवर्तन होणे एवढ एकच ध्येय आहे. कुंडलिनी काही स्वारस्य नाही. म्हणजे परमात्म्याला समजून घेण्यात आपण तुम्हाला सर्व ताप-त्रास-आजारापासून मुक्त करते. सहजयोग हा काही तरी चूक करत असतो. जे परम आहे त्याला परम राहण्यातच कुंडलिनी -जागृतीचा आणि परमात्म्याशी योग करून देणारा मार्ग रस असतो हे नीट लक्षात घ्या. परमतत्त्व मिळवण्यासाठी कुंडलिनी- आहे. जे लोक पार झाले आहेत त्यांना विशेष सांगणे असे आहे योग आवश्यक आहे अशी एक समजूत आहे. पण ज्यांना सिद्धी की याचा जडाशी कधीही संबंध लावू नका; पुरी सतर्कता बाळगून प्राप्त झाली त्यांना कुंडलिनी-जागृतीतूनच ती मिळाली हे मात्र आपणच आपल्या जीवनाचा विचार म्हणजेच सहजयोग करा. खरे आहे. परमतत्त्वाशी योग होणे महत्वाचे आहे. कुंडलिनी तुमची आई आहे; ती फक्त तुम्हाला पुनर्जन्म नाही. तुमच्यामधील चेतना शुद्ध व पूर्णपणे जागृत व्हायला हवी व देते; तुम्ही जे काही बुद्धीमधून मिळवले आहे त्यापेक्षाही ती अधिक चैतन्याच्याच संपर्कात सर्वकाळ राहण्याचा प्रयत्न करा व तशी समजदार आहे. ती प्रेमाचा सागर आहे; तुम्हाला चुकीच्या मार्गाकडे सवय लावा. कुंडलिनी जागृतीनंतर तुम्ही काहीतरी विशेष मिळवले ती येऊच देणार नाही तिची सर्व रचना परमात्म्याने खूप कुशलतेने पाहिजे. नेहमीचे कुटुंब, पैसा, संस्कार, वाद-विवाद सर्व सोडून केली आहे. बालक जन्माच्या आधी मातेच्या उदरात असतो द्या. परम मिळवण्यासाठी माणूस पूर्णपणे जागृत असयला हवा. आत्मसाक्षात्कार हा तुमचा पुनर्जन्म आहे हे लक्षात न भूतपिशाच्य करणार्यांकडून तुम्हाला काहीही मिळणार तेव्हा जडतत्त्वाकडून त्याचे मन-बुद्धी-अहंकार इ. तयार होतात, पण त्यामध्ये जो प्रकाश येतो तो मस्तकातील ब्रह्मरंध्रातून येतो मान मिळाला. मातेला गुरू होणे अवघड आहे. कारण ती फक्त आणि शेवटी मणक्याच्या शेवटच्या त्रिकोणाकार अस्थीमध्ये प्रेमस्वरूप आहे. मुलांचा गौरव यातच आनंद मिळवा. गुरुला स्थिराऊन तीन नाडी-संस्था तयार होतात. त्रिकोणाकार तुम्ही काही देऊ शकत नाही. काही मागायचे असेल तर जे परम अस्थीमधील शक्ती हीच कुंडलिनी. या शक्तिबद्दल खूप लिहिले आहे ते मागा आणि है प्रेम दूर दूरवर वाटा. गेले आहे. पण ती जागृत होणे हा भाग महत्वाचा आहे. कुण्डलिनी आज गुरुपोर्णिमेच्या शुभदिवशी 'मला गुरू होण्याचा सर्वांना आनंत आशीर्वाद. जागृत होण्याची मुख्य खूण म्हणजे आपली बुबुळे मोठी होणे. ही स्पंदनाकार जागृत होत असल्यामुळे शास्त्रीय उपकरणांवर दिसू शकते. ते तुम्ही पाह शकता व त्याची प्रचीती घेऊ शकता. कुंडलिनी जागृत झाल्यावरच तुम्ही पार होऊ शकता. अर्थात हे 16